प्राचीन भारत में अध्ययन के पाठ्यक्रम

   प्राचीन भारत में अध्ययन के पाठ्यक्रम प्राचीन भारत में शिक्षा के विभिन्न स्तर और पाठ्यक्रम –  प्राचीन भारत में शिक्षा के दो स्तर देखने को मिलते हैं:  (1) प्राथमिक शिक्षा स्तर     और    (2) उच्च शिक्षा स्तर  शिक्षा के विभिन्न स्तरों की व्यवस्था और पाठ्यक्रम: 1 . प्राथमिक शिक्षा स्तर – आज की प्राथमिक शिक्षा […]

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भारत में वैदिक काल शिक्षा

भारत में वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के दोष    प्राचीन युग में ‘शिक्षा’ को न तो पुस्तकीय ज्ञान का पर्यायवाची माना गया और न जीविकोपार्जन का साधन । इसके विषय में, शिक्षा को वह प्रकाश माना गया है, जो व्यक्ति को अपना सर्वांगीण विकास करने, उत्तम जीवन व्यतीत करने और मोक्ष प्राप्त करने में

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भारतीय जीवन में वैदिक शिक्षा

       भारतीय जीवन में वैदिक शिक्षा के अर्थ       वेद हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ हैं। हमारे देश की शिक्षा धर्म पर ही आधारित है। प्राचीन भारतीय शिक्षा का उद्भव वेदों से ही माना जाता है। परन्तु, आदिकाल में वेदों का ज्ञान लिपिबद्ध नहीं था। काफी समय पश्चात् ऋषियों ने इसे लिपिबद्ध किया ।

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वैदिक कालीन शिक्षा -प्रणाली

      वैदिक शिक्षा (I) ऋग्वेदिकालीन शिक्षा       शिक्षा के प्रति आर्यों का विशेष लगाव था। प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रमुख विद्वान् डॉ० अल्तेकर ने वैदिक कालीन शिक्षा को भारतीय इतिहास में विशेष महत्त्व दिया है।       भारत के सम्पूर्ण वैदिक साहित्य की रचना इसी काल में हुयी थी। इसी काल में प्रत्येक व्यक्ति और स्त्री

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आकलन का क्या उद्देश्य हैं

       आकलन का उद्देश्य  आकलन का उद्देश्य –    आकलन का उद्देश्य सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं का चुनाव एवं सामग्री का सुधार करना है और उन लक्ष्यों पर पुनर्विचार करना है जो विद्यालयों के विभिन्न चरणों के लिए तय किये गए हैं। आकलन के द्वारा यह किया जाता है कि अधिगमकर्त्ता की क्षमता किस हद

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सतत एवं व्यापक मूल्यांकन

सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन –    “मूल्यांकन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो शिक्षा-व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है और अंतिम रूप से शैक्षिक उद्देश्यों से सम्बन्धित है।”  –  भारतीय शिक्षा आयोग मूल्यांकन एक अत्यन्त व्यापक प्रक्रिया है। किसी भी प्रकार की योग्यता, कौशल, उपलब्धि आदि की जानकारी प्राप्त करने के

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निबन्धत्मक परीक्षा

          निबन्धात्मक परीक्षा  निबन्धात्मक परीक्षा का अर्थ –    निबन्धात्मक परीक्षाओं का तात्पर्य ऐसी परीक्षण-प्रणाली से है जिसके अन्तर्गत सभी बालक पाठ्यक्रम के कई प्रश्नों के उत्तर निश्चित समय के अन्दर निबन्ध के रूप में देते हैं। इन परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तर इतने लम्बे होते हैं कि परीक्षक बालकों की विचार,

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समाजीकरण किसे कहते हैं

         समाजीकरण  समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ  –   समाजीकरण से तात्पर्य व्यक्ति को  सामाजिक प्राणी बनाना है। व्यक्ति और समाज का घनिष्ठ सम्बन  होता है | किसी भी व्यक्ति को हम जैसा भी देखते हैं वह उसके समाज के कारण होता है | व्यक्ति शिशु के रूप में कुछ ‘जैविकीय आवश्यकताओं को

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सृजनात्मकता क्या होती है

सृजनात्मकता का अर्थ  –   सृजनात्मकता का अंग्रेजी भाषा का पर्याय Creativity हैं  जिसका  अर्थ होता है ‘By way of creation’ | इसका हिन्दी अर्थ है ‘उत्पादन से। इस प्रकार सुजनात्मक का शाब्दिक पर्याय “उत्पादन से सम्बन्धित हुआ। प्रत्येक व्यक्ति के कियाकलापों का महत्त्वपूर्ण गुण सृजनात्मकता है। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति में सृजनात्मकता होती हैं |आवश्यकता उसके

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शिक्षण अधिगम प्रक्रिया क्या है

              शिक्षण अधिगम प्रक्रिया  शिक्षण और अधिगम में घनिष्ठ संबंध  –   प्रभावी शिक्षण से अधिगम अधिक  सार्थक और व्यावहारिक होता है।    शिक्षण को परिभाषित करते हुए प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री बर्टन ने कहा है, “शिक्षण सिखाने  के लिए प्रेरणा, पथ-प्रदर्शन, पथनिर्देशन और प्रोत्साहन है।”  इसी सदर्भ में डमविल का कथन है, “शिक्षण का सरलतम अर्थ है

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