बाबर का जीवन परिचय इतिहास

बाबर जीवन परिचय

बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल साम्राज्य के भारत में लगभग 300 सालों तक शासन किया। बाबर ने अपने पिता के निधन के बाद 12 साल की ही उम्र में पिता का कारोबार संभालना शुरू किया।

उन्होंने फरगना प्रदेश को जीतकर राज्य करना आरम्भ किया और स्वयं को चंगेज खान के परिवार का अंग माना। इसके पश्चात वे तैमुर के वंशजों में आते हैं, जिनके खून में दो महान शासकों का रक्त बहता था।

उन्होंने ने अपने युवावस्था से ही युद्ध के मैदान में अपनी प्रवृत्ति प्रदर्शित की थी | उन्होंने जीवन के पहले दिनों में कई लड़ाइयां लड़ीं,विजय प्राप्त की और संधि-विच्छेद का अनुभव किया।

बाबर का शुरूवाती जीवन :

बाबर ने एक नये तरीके से अपनी कहानी रची है। उनके जीवन में उनके परिवार की ज़िम्मेदारी बहुत जल्दी ही आई थी।

वे फरगना को जीतने में सफल रहे, लेकिन राज्य की अधिकांश अवधि तक उन्हें वहां शासन नहीं करने को मिला |

वे इसे कुछ ही दिनों में हार गए। उसके बाद, उन्हें बहुत कठिन समय का सामना करना पड़ा और उन्होंने बहुत मुश्किलों के बावजूद अपना जीवन बिताया।

लेकिन इस कठिन समय में भी, कुछ वफादार साथी ने उनका साथ नहीं छोड़ा।

थोड़े समय बाद, जब उनके दुश्मन एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे थे, तब बाबर ने इस स्थिति का लाभ उठाया और 1502 में अफगानिस्तान के काबुल को जीत लिया।

साथ ही, उन्होंने अपनी पैतृक स्थानों में फरगना और समरकंद को भी जीत लिया। बाबर की 11 बेगमें थीं, जिनसे उन्हें 20 बच्चे पैदा हुए।

उन्होंने अपने पहले बेटे, हुमायूँ, को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

बाबर का भारत आना :

बाबर ने अपनी कहानी को एक नया आयाम दिया। जब मध्य एशिया में उनका साम्राज्य फैलने में असफलता मिली, तो उनकी दृष्टि भारत की ओर गई।

उन्हें विचार आया कि भारत की राजनीतिक स्थिति उनके साम्राज्य का विस्तार करने के लिए उचित होगी।

तब वहां दिल्ली के सुल्तान कई लड़ाइयों को हार रहे थे, जिसके कारण गड़बड़ी उत्पन्न हुई थी।

भारत के उत्तरी क्षेत्र में अफगानिस्तान और राजपूतों के कुछ प्रदेश थे | लेकिन इन प्रदेशों के आसपास के क्षेत्र स्वतंत्र थे, जो अफगानी और राजपूत के अंदर नहीं आते थे।

दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी एक कुशल शासक नहीं थे। इब्राहिम लोदी से गवर्नर दौलत खान उनके कार्य से बहुत नाखुश थे।

बाबर को इब्राहिम के एक मामा आलम खान का परिचय था, जो दिल्ली की सल्तनत के मुख्य दावेदार थे।

तब आलम खान और दौलत खान ने बाबर को भारत आने का आमंत्रण भेजा।

बाबर को यह आमंत्रण बहुत पसंद आया, उसे इससे अपना लाभ महसूस हुआ और वह अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए दिल्ली की ओर निकल पड़े।

पानीपत का प्रथम युद्ध :

पानीपत की पहली लड़ाई, जो अप्रैल 1526 ई० में हुई थी | बाबर और भारत के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच में संपन्न हुई।

इस युद्ध से पहले, बाबर ने 4 बार विस्तृत जांच पड़ताल की थी, जिससे उन्हें युद्ध में सफलता मिलने की संभावना हुई।

मेवाड़ के राजा राणा संग्राम सिंह भी चाहते थे कि बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच युद्ध हो |

क्योंकि इब्राहिम लोदी उनके शत्रु थे। राणा सांगा ने भी बाबर को भारत आकर इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध करने का निमंत्रण दिया था।

बाबर ने इस युद्ध में जीत हासिल की थी। इब्राहिम लोदी ने अपनी हार को देखकर स्वयं को मौत के आग्रह में गले लगा लिया था।

खनवा की लड़ाई :

पानीपत की विजय के बावजूद, बाबर की स्थिति भारत में अभी भी कमजोर थी। राणा संग्राम ने ही बाबर को भारत बुलाया था, उन्हें लगा कि वह वापस काबुल चला जाएगा।

लेकिन बाबर का भारत में ठहरने का निर्णय राणा संग्राम को मुसीबत में डाल दिया। अपने बढ़ते हुए बल को दिखाने के लिए, बाबर ने मेवाड़ के राणा संग्राम को चुनौती दी और उन्हें खनवा में हरा दिया। राणा संग्राम सिंह के साथ कुछ अफगानी शासक भी जुड़ गए थे |

इसके बाद उन्होंने अफगानी शासक को भी परास्त कर दिया। 17 मार्च 1527 को खनवा में दो भयंकर सेनाओं ने आमने-सामने युद्ध किया।

राजपूत सेना ने अपने परंपरागत तरीके से लड़ाई लड़ी, लेकिन बाबर की सेना के पास नवीनतम हथियार थे, जिनका राजपूत ने मुकाबला नहीं कर पाया और वे बहुत बड़ी हार के सामने आ गए।

बाबर की सेना ने राजपूत सेना को पूरी तरह से मौत के घाट उतार दिया। राणा संग्राम ने पराजित होना पसंद नही किया और  खुदखुशी कर लिया। राणा संग्राम की मृत्यु के साथ ही, राजपूतों का भविष्य खतरे में आने लगा। इस विजय के साथ, लोगों ने उसे “गाज़ी” की उपाधि दी।

घागरा की लड़ाई :

राजपूतों को पराजित करने के बाद, बाबर को अब अफगानी शासकों के साथ जो बिहार और बंगाल में राज्य कर रहे थे, उनके विरोध का सामना करना पड़ा। मई 1529 में घागरा में, बाबर ने सभी अफगानी शासकों को पराजित कर दिया।

वह अब एक मजबूत शासक बन गए थे, जिसे कोई भी हरा नहीं सकता था। उनके पास एक भयानक सेना तैयार थी, और कोई भी राजा बाबर के सामरिक उद्यम से डरता था।

इस परिस्थिति में, बाबर ने भारत में शासन की गति को तेज़ किया, वह देश के विभिन्न क्षेत्रों में गया और वहां पर अत्याचार किया।

बाबर धार्मिक तत्वों के प्रति उत्सुक नहीं थे, उन्होंने कभी भी हिन्दू लोगों पर इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए दबाव नहीं डाला।

आगरा, उत्तर प्रदेश में, उन्होंने अपनी विजय के खुशी में एक सुंदर बाग़ बनवाया, और वहां उन्होंने किसी भी धार्मिक प्रभाव को दर्शाने वाली संरचनाओं को शामिल नहीं किया। इसे “आराम बाग़” कहा गया।

बाबर की म्रत्यु :

मृत्यु से पहले ही बाबर ने पंजाब, दिल्ली और बिहार को जीत लिया था। मृत्यु से पहले उन्होंने खुद की एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें उनके बारे में हर छोटी-बड़ी बात थी। बाबर का बेटा हुमायूँ था, कहा जाता है कि जब वह 22 वर्ष का था, तब उसे एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया था।

विभिन्न वैद्य उसकी बीमारी को ठीक नहीं कर पा रहे थे और सभी कह रहे थे कि अब केवल भगवान ही कुछ कर सकते हैं। बाबर हुमायूँ को बहुत प्यार करते थे और उन्हें ऐसे मरते नहीं देखना चाहते थे।

इसलिए उन्होंने एक दिन हुमायूँ के पास जाकर भगवान से प्रार्थना की कि वे चाहें तो मेरी  जान ले लें, लेकिन हुमायूँ को ठीक कर दें।

उसी दिन से हुमायूँ की हालत सुधरने लगी। जैसे-जैसे हुमायूँ ठीक होते गए, वैसे-वैसे बाबर बीमार होते गए। सभी लोग ने इसे भगवान के चमत्कार के रूप में माना।

1530 में, जब हुमायूँ पूरी तरह स्वस्थ हो गए, तब बाबर की मृत्यु हो गई। उसका शव अफगानिस्तान ले जाकर अंतिम संस्कार हुआ। इसके बाद हुमायूँ मुग़ल साम्राज्य के शासक बने और दिल्ली की गद्दी पर राज्य किया।

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