समाजीकरण किसे कहते हैं

         समाजीकरण 

समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ  –   समाजीकरण से तात्पर्य व्यक्ति को  सामाजिक प्राणी बनाना है। व्यक्ति और समाज का घनिष्ठ सम्बन  होता है | किसी भी व्यक्ति को हम जैसा भी देखते हैं वह उसके समाज के कारण होता है | व्यक्ति शिशु के रूप में कुछ ‘जैविकीय आवश्यकताओं को लेकर जन्म लेता है।  जन्म के समय वह केवल पशुवत् होता है। धीरे-धीरे, परिवार, समाज आदि के साथ अन्त : क्रियाएँ करता हुआ विकास करता जाता है । धीरे-धीरे वह अपने समुदाय की समस्त बातों की सीख लेता है  जो सामदायिक जीवन में नित्य प्रयोग की जाती है। इस प्रकार उसमें अनेक सामाजिक गुणों  का विकास होता जाता है। यदि उसे अपने परिवार, पड़ोस, विद्यालय आदि से दूर रखा  जाए तो वह निरा पशु का पशु ही रह जाए। अन्ना, कमला, इजावेला आदि बच्चों को  दुर्भाग्यवश सामाजिक वातावरण प्राप्त न हो सकता । परिणामस्वरूप उनका व्यवहार पशु –तुल्य था। किन्तु जब उन्हें सामाजिक वातावरण में रखकर कुछ सिखाने का प्रयास किया गया  तो वे कुछ सामाजिक गुण बोलना, मनुष्य की तरह चलना-फिरना, उठना-बैठना आदि सीख  गए। सीखने की इसी प्रक्रिया को ही समाजीकरण कहा जाता है।

समाजीकरण सामाजिक जीवन के ढंग को सीखने-सिखाने की एक प्रक्रिया है |  समाजीकरण के द्वारा बालक रहन-सहन, आदतें, विश्वास, सामाजिक नियम, मल्य मानक  अभिवृत्तियाँ और रीति-रिवाज आदि सीखता है। अतः समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक आयु बढ़ने के साथ-साथ समाज के अन्य व्यक्तियों की भाँति सामाजिक व्यवहार का अधिगम करता है। यह भी कहा जा सकता है कि, “समाजीकरण का तात्पर्य सीखने की उस प्रक्रिया से है जिसमें जन्म के बाद जैविकीय व्यक्ति क्रमशः सामाजिक गुणों को सीखने के परिणामस्वरूप सामाजिक प्राणी था मानव के रूप में परिवर्तित होने लगता है। समाजीकरण पर विभिन्न विद्वानों ने निम्नानुसार अपने विचार प्रकट किए हैं

बोगार्ड्स के अनुसार, “समाजीकरण मिलकर काम करने, सामूहिक उत्तरदायित्व को भावना को विकसित करने और दूसरों के कल्याण संबंधी आवश्यकताओं द्वारा निर्देशित होने की प्रक्रिया है।”

सिकोई तथा बैकमैन के अनुसार, “समाजीकरण एक अन्त:क्रियात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यवहार का परिमार्जन उस व्यक्ति से सम्बन्धित समह के सदस्यों की प्रत्यादशाओं के  अनुरूप होता है।”

ब्रार्फी  के अनुसार, “समाजीकरण वह संयक्तीकरण है जिसमें सामाजिक समूह मानव  के विस्तृत आन्तरिक बल पर इस प्रकार दबाव डालते हैं कि वह समूह के नियमों और  मानवों के साथ अनुरूपता स्थापित कर लें।”

ऑगबर्न और निमकॉफ के अनुसार, “समाजीकरण शब्द का कुछ समाजशास्त्रियों ने  उस प्रक्रिया के लिए प्रयोग किया है जिसमें व्यक्ति मानव के रूप में परिवर्तित होता है |

फिचर के अनुसार, “समाजीकरण एक व्यक्ति और उसके अन्य साथी व्यक्तियों के  बीच पारस्परिक प्रभाव की एक प्रक्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति सामाजिक व्यवहार के प्रतिमानों को स्वीकार करता है और उनके साथ अनुकलन करता है |”

अकोलकर (1960) के अनुसार, “समजिकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति व्यहार के परम्परागत प्रतिमानों को ग्रहण करता है | व्यक्ति का समाजीकरण तभी होता है जबकि वह दूसरे व्यक्तियों के संगठित होता है और सांकृतिक के संपर्क मेंअत है|”

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर समाजीकरण को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि समाजीकरण अन्तःक्रियात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति समाजीकरण में सामाजिक मूल्यों, विश्वासों, नियमों और मानकों आदि को सीखता है। समाजीकरण प्रक्रिया में व्यक्ति जो कुछ भी सीखता है, वह उस व्यक्ति के समूह के सदस्यों ही प्रत्याशाओं के अनुरूप होता है।

सामाजीकरण में सहायक कारक –   समाजीकरण की अधिगम उन्नति में जो भिन्नता के  स्तरपाये जाते हैं, उसके पीछे अनेकों महत्त्वपूर्ण तथ्यों का योगदान होता है। यदि सामाजिक, शैक्षिक एवं परिवेश की परिस्थितियाँ भिन्न हैं तो समाजीकरण की उन्नति भी भिन्न प्रकार को होगी क्योंकि पर्यावरणीय एवं सामाजिक कारक इसको बहुत प्रभावित करते हैं ऐसे ही कुछ कारक निम्नलिखित हैं

1  . परिवार व उसके रीति-रिवाज – परिवार बालक के समाजीकरण की प्रथम पाठशाला है। परिवार के सदस्यों द्वारा ही बालक के समाजीकरण का प्रारम्भ होता है । बालक अपने परिवार के सदस्यों की क्रियाओं का अनुकरण करता है तथा उन्हीं के द्वारा अपने परिवेश में समायोजन की क्षमता उत्पन्न करना है। अतः समाजीकरण की अधिगम उन्नति पर परिवार का सीधा एवं प्रत्यक्ष प्रभाव होता है। जिन परिवारों में सामाजिक रीति-रिवाजों का आयोजन एवं प्रचलन अधिक पाया जाता है वहाँ पर बालक के समाजीकरण की प्रगति तीव्र गति से होती है और जिस परिवार में सामाजिक रीति-रिवाजों कम मान्यता प्रदान की जाती है अर्थात् सामाजिक आयोजन काम होते है तो वहाँ पर समाजीकरण का अधिगम कम होती है क्योंकि परिवार में होने वाली अत्यक गतिविधियों का प्रभाव बालक पर पड़ता है।

2 वंशानुक्रम एव शारीरिक विकास –  कुछ विद्वानों का मानना है कि सामाजिक एवं शैक्षिक योग्यता का विकास वंशानुक्रम के आधार पर होता है क्योंकि प्रायः यह पाया जाता हैं की जिन परिवारों में सामाजिक नियम एवं मान्यताओं का अधिक महत्त्व दिया जाता है, सर्वप्रथम उन परिवारों के बालकों में सामजीकरण की प्रक्रिया का विकास तीव्र गति से होता हैं और समाजीकरण की अधिगम उन्नति तीव्र गति से होती है।

जिस बालक  का शरीरिक विकास सन्तोषजनक होता है, उसमें समाजीकरण की अधिगम उन्नति की अधिक सम्भावना  रहती है क्योंकि प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक का मानना है, “सामाजिक विकास का सीधा सम्बन्ध बालक के शारीरिक विकास से होता है और बालक के सामाजिक विकास का सम्बन्ध समाजीकरण की अधिगम उन्नति से होता हैं  अतः बालक के शारीरिक विकास का सीधा सम्बन्ध समाजीकरण का अधिगम उन्नति से होता है।”

 3 संवेगात्मक विकास  –  जो व्यक्ति स्वभाव से संवेगात्मक रूप से अस्थिर पाये जाते हैं उनमें समाजीकरण अधिगम उन्नति की सम्भावना कम होती है क्योंकि अपनी संवेगात्मक अस्थिरता के कारणवे सामाजिक क्रियाएँ ठीक प्रकार से सम्पन्न नहीं कर पाते हैं। उसके विपरीत मधुर स्वभाव वाले व्यक्तियों एवं संवेगात्मक स्थिरता वाले व्यक्ति समाज में प्रिय  भी होते हैं और सामाजिक क्रियाओं का सम्पादन भी ठीक प्रकार से करते हैं |अंत: समाजीकरण की अधिगम उन्नति की सम्भावना संवेगात्मक स्थिरतावाले व्यक्तियों में अधिक  पायी जाती है।

4.माता-पिता की आर्थिक स्थिति एवं दृष्टिकोण   –   यदिमाता – पिता आर्थिक रूप से  सम्पन्न हैं तो बालक में समाजीकरण की अधिगम उन्नति अधिक होगी क्योंकि संपन्न परिवार के बच्चे समाज में अपने आपको सामंजस्य की क्षमता द्वारा प्रतिष्ठित कर लेते हैं और  समाजीकरण की ओर अग्रसर हो जाते हैं वहीं गरीब माता-पिता के बच्चे हीन भावना के  शिकार हो जाते हैं। लेकिन, यह तथ्य पूर्णतः सत्य नहीं होता है, फिर भी समजिकरण को  अधिगम उन्नति पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है।

    यदि माता-पिता की विचारधारा सामाजिक नियम एवं परम्पराओं के  प्रति सकारत्मक है तो बालक में समाजीकरण की अधिगम उन्नति अधिक होगी। इसके विपणी माता – पिता  सामाजिक नियम एवं मान्यताओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं तो समाजीकरण  की अधिगम उन्नति कम होगी क्योंकि बालक भी अपने माता-पिता के दृष्टिकोण का अनुकरण कुछ न कुछ अवश्य करता है।

5.विद्यालय का वातावरण एवं शिक्षक   –   यदि विद्यालय में सामाजिक क्रियाओं का  आयोजन होता है तो बालक के समाजीकरण की अधिगम उन्नति अधिक होगी क्योंकि उन क्रियाओं में सहयोग, सामंजस्य एवं उद्देश्य भी भावना निहित होती है, जिसमें बालक उन  गुणों को सीखता है और समाजीकरण की ओर अग्रसर होता है। उदाहरण के लिए, पाठयक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन विद्यालय में समाजीकरण की अधिगम उन्नति के दृष्टिकोण  के आधार पर ही किया जाता है।

शिक्षक का व्यवहार छात्रों के प्रति सहयोगी एवं सहानुभूतिपूर्ण होगा तो बालक का विकास समाजीकरण की ओर अग्रसर होगा क्योंकि उसका व्यवहार छात्र की मनोदशा को भी प्रभावित करेगा। इसके विपरीत यदि शिक्षक का व्यवहार उचित नहीं है तो समाजीकरण की अधिगम उन्नति कम होगी क्योंकि शिक्षक का रूखा व्यवहार बालक को सामाजिक गुणों  से सम्पन्न नहीं कर सकता है।

6  .भाषा –  यदि भाषायी एकता समाज के अन्दर पायी जाती है तो सामाजिक  एवं सांस्कृतिक क्रियाओं का आदान-प्रदान सरलता से होता है जिसके द्वारा समाजिकरण की अधिगम उन्नति तीव्र गति से होगी। इसके विपरीत भाषागत अनेकता पायी जायेगी सांस्कृतिक  एवं सामाजिक क्रियाओं के आदान-प्रदान में असुविधा होगी और समाजीकरण की अधिगम उन्नति कम होगी।

7  समूह हरलॉक का मानना है कि “समाजीकरण का प्रशिक्षण अगर एक बालक  को दिया जाता है तो उसका प्रभाव कम होता है जबकि समूह में दिया जाये तो उसका  प्रभाव कई गुना अधिक होता है। इसलिए समूहवादी प्रवृत्ति बालक के समाजीकरण की अधिगम उन्नति को अधिक प्रभावित करती है। इसके विपरीत आत्म – केन्द्रित प्रवृत्ति में समाजीकरण की अधिगम उन्नति कम होती है।”

8  सामाजिक प्रतियोगिताएँ –  यदि समाज में सामाजिक गुणों के  विकास से सम्न्धित प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है तथा इसके लिए पुरस्कार से सम्मानित करके व्यक्तियों  को प्रोत्साहित किया जाता है तो समाजीकरण का विकास तीव्र गति से होता है ।  लेकिन इसके विपरीत अवस्था में समाजीकरण का विकास मन्द गति से होगा |

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