आधिकारिक परिचय
मोहनजोदड़ो भारत के पाकिस्तान क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन सभ्यता है। यह प्राचीन शहर कच्छ क्षेत्र के थार मरूस्थली में स्थित है और इसे इंदुस नदी घाटी सभ्यता का महत्वपूर्ण अंश माना जाता है। मोहनजोदड़ो ने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अपनी खोज के दौरान 1920 में चर्चा में आया। यहां की खुदाई से विभिन्न प्राचीन संरचनाओं, मूर्तियों, और सामग्री के अवशेष मिले हैं जो इस स्थान के महत्व को दर्शाते हैं।
स्थापना
मोहनजोदड़ो का निर्माण लगभग 2600 ईसा पूर्व हुआ था। इसे सभ्यता के पुराने युग में एक महत्वपूर्ण शहर माना जाता है। मोहनजोदड़ो शहर भूमि पर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था और यहां विभिन्न उत्पादों की व्यापारिक गतिविधियाँ होती थीं। इसका विस्तार देखने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस सभ्यता ने लगभग 2500 साल तक अपनी प्रभावशाली व्यापारिक व्यवस्था बनाए रखी।
सभ्यता और संस्कृति
मोहनजोदड़ो शहर की सभ्यता में बहुतायत और धर्मीय संगठन था। यहां निवास करने वाले लोग अपने धार्मिक और सामाजिक जीवन को महत्व देते थे। इस सभ्यता में उन्नत कृषि प्रणालियों का विकास हुआ था और इसका प्रमुख ध्येय खेती और व्यापार था।
महत्वपूर्ण खुदाई
मोहनजोदड़ो में हुई खुदाई ने बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। इस खुदाई में मिले हुए अवशेषों से हमें इस सभ्यता के संरचनात्मक और सामाजिक तथ्यों का पता चला है। खुदाई में पाए गए सिक्के, मूर्तियाँ, और शिलालेखों से हमें इस सभ्यता के धार्मिक और सांस्कृतिक पक्ष का अनुमान लगाया जा सकता है।
विदेशी यात्री और मोहनजोदड़ो
मोहनजोदड़ो का पहला विदेशी यात्री जो यहां आया था उसका नाम सर जॉन मर्शल है। सर जॉन मर्शल ने 1931 में मोहनजोदड़ो का खोज और अध्ययन किया। उनके अनुसार, यहां की महत्वपूर्णता और उसकी विलक्षणता ने उन्हें प्रभावित किया और मोहनजोदड़ो की खुदाई को विश्वविद्यालयों और इतिहासकारों की ध्यान आकर्षित कर दिया।
मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित है
इस सभ्यता का सिन्ध प्रांत, पाकिस्तान में स्थित एक प्राचीन सभ्यता का प्रमुख स्थल है। यह खैरपुर जिले के पास सिन्धु नदी के किनारे स्थित है। मोहनजोदड़ो को 1922 में खोजकर्ता सर जॉन मारशल ने पहचाना था। यहां पाए गए महत्वपूर्ण धाराएं, इमारतें और अवशेषों से पता चलता है कि यहां लगभग 2500 से 1900 ईसा पूर्व के बीच महाजनपदीय सभ्यता विकसित थी।
इस में कई महत्वपूर्ण संरचनाएं मिलती हैं, जैसे कि बड़े आकार के उन्नत घर, बाजार क्षेत्र, सभ्यता के स्तंभ, विभिन्न प्रकार के शिलालेख, गढ़ और कुंडों की विविधता आदि। इन संरचनाओं से पता चलता है कि मोहनजोदड़ो में एक समृद्ध और व्यापक सभ्यता थी जहां व्यापार, कृषि, औद्योगिक गतिविधियां आदि प्रचलित थीं।
इस सभ्यता पाए गए खजाने इस स्थल की महत्वपूर्णता को दर्शाते हैं। यहां से निकले हुए वस्त्र, आभूषण, गहने, वस्त्र उत्पाद, सिक्के आदि सभ्यता की सामग्री में संग्रहीत की जाती हैं। मोहनजोदड़ो की खोज और अध्ययन से हमें प्राचीनतम सभ्यताओं के बारे में महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है और इसे मानवीय इतिहास के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
मोहनजोदड़ो की खोज किसने की और कब की
मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में ब्रिटिश खोजकर्ता सर जॉन मार्शल द्वारा की गई। सर जॉन मार्शल एक ब्रिटिश आईएएस (Indian Civil Service) अधिकारी थे और उन्होंने भारतीय मूल के तो नहीं थे, लेकिन वे भारतीय प्राचीनता के अध्ययन में गहराई से रुचि रखते थे।
सर जॉन मार्शल को 1920-21 में सिन्ध प्रांत में एक प्रोविंशियल सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। इस समय, उन्होंने खैरपुर जिले के निकट मोहनजोदड़ो नामक स्थान पर एक महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल के अस्तित्व के बारे में सुना।
1922 में सर जॉन मार्शल ने मोहनजोदड़ो में खुदाई की शुरुआत की और वहां से विभिन्न अवशेषों को उजागर किया। उन्होंने इस स्थान की खोज में कई महत्वपूर्ण और प्राचीन वस्तुओं का पता लगाया, जो इस सभ्यता के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करते हैं।
उनकी खोज ने मोहनजोदड़ो को एक महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल के रूप में प्रस्तुत किया और आगे के अध्ययनों ने इस स्थल की महत्वपूर्णता को दर्शाया।
मोहनजोदड़ो का अन्नागार
मोहनजोदड़ो में पाए गए अन्नागार से संबंधित जानकारी के अनुसार, इस सभ्यता में खाद्य उत्पादन और व्यवस्था का महत्वपूर्ण स्थान था। यहां पाए गए अन्नागार में विभिन्न खाद्य पदार्थों के प्रमुख अवशेष शामिल हैं।
अन्नागार संरचनाएं: मोहनजोदड़ो में अनेक बड़े अन्नागारों की मौजूदगी पाई गई है। इन अन्नागारों में खाद्य पदार्थों को संग्रहित किया जाता था। अन्नागारों की विशालता, उन्नत विन्यास और अलग-अलग खाद्य पदार्थों के विभाजन की उपस्थिति से पता चलता है कि यहां खाद्य उत्पादन का अच्छा संगठन हुआ करता था।
खाद्य पदार्थों के अवशेष: मोहनजोदड़ो से मिले गए अवशेषों में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के अवशेष पाए गए हैं। यहां मिले ग्रेनो (धान), गेहूं, जौ, बाजरा, मटर, मसूर दाल, लोबिया, तिलहन, तिल (सेसम), तेल के बीज, मिश्रण और अन्य अनाज के अवशेष इसकी पुष्टि करते हैं। यह बताता है कि मोहनजोदड़ो में विभिन्न खाद्य पदार्थों का उत्पादन, संग्रहण और उपयोग किया जाता था।
इन सभी तथ्यों से स्पष्ट होता है कि मोहनजोदड़ो ने उनके या उनके प्रशंसकों के आहार के लिए खाद्य संग्रहण और अद्यतन का महत्वपूर्ण संरचना बनाया था।
मोहनजोदड़ो को 1922 में ब्रिटिश खोजकर्ता सर जॉन मार्शल द्वारा पहचाना गया था और उसके बाद से इस सभ्यता के अध्ययन में कई अन्य खोजकर्ताओं और विद्वानों ने भी भाग लिया है। उन्होंने मोहनजोद़ो के अवशेषों की खोज करके इस सभ्यता के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त की है। इन अध्ययनों से हमें मोहनजोद़ो सभ्यता की समृद्धि, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और समाज ज्ञान के बारे में बहुत कुछ पता चलता है।
संगठित शहरी जीवन: मोहनजोद़ो में महत्वपूर्ण नगरों का विकास हुआ था, जो व्यापार, शिल्प, औद्योगिक गतिविधियों और नगरीय जीवन का केंद्र बने थे। ये नगर निर्माण में स्थानीय ईंटों, सांडस्टोन, और मोर्टार का उपयोग किया जाता था।
पश्चिमी और उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप का संपर्क: मोहनजोद़ो सभ्यता ने अपनी व्यापारिक और सांस्कृतिक बांधों के माध्यम से पश्चिमी और उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप के साथ संपर्क बनाया। इसका प्रमाण मिलता है जैसे विदेशी अवशेषों, जैसे कि मेसोपोटामियाई मूल के आर्टीफैक्ट्स और खड़ी से आए गए मोहनजोद़ो में पाए जाने वाले मोहरों से।
सभ्यतावादी संस्कृति: मोहनजोद़ो सभ्यता का आधार धार्मिक और सामाजिक अवधारणाओं पर आधारित था। यहां प्राचीन मंदिरों, यज्ञकुंडों, और प्रतिमाओं की खोज की गई है। यहां धार्मिक और सामाजिक उत्सव आयोजित किए जाते थे।
पशुपालन और खेती: मोहनजोद़ो सभ्यता में पशुपालन (गाय, भैंस, बकरी आदि) और खेती (गेहूं, जौ, मटर, चावल आदि) की व्यापक व्यवस्था थी। इससे ज्यादातर लोगों का आजीविका स्रोत कृषि पर निर्भर था।
मोहनजोद़ो सभ्यता की अध्ययन और खोज ने हमें एक प्राचीन और समृद्ध सभ्यता के बारे में बहुत कुछ सीखने का अवसर दिया है। यह एक महत्वपूर्ण चरित्रित सभ्यता थी जो विश्व सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली थी।
समाप्ति
मोहनजोदड़ो एक महत्वपूर्ण धरोहर है जो हमें इंदुस नदी घाटी सभ्यता की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है। यहां की खुदाई से मिले हुए अवशेष हमें यह दिखाते हैं कि भारत में इतिहास के विभिन्न कालों में उन्नत सभ्यता का विकास हुआ और वहां के लोग व्यापार और कृषि के क्षेत्र में समृद्धि को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहे हैं।