परिचय
मुग़ल राजवंश ने भारत में कई सदियों तक शासन किया है। इस यात्रा में, मुग़ल शासकों ने हज़ारों-लाखों लोगों पर राज्य किया है। इस समय, भारत एक ऐसे नियम के तहत एकत्रित हुआ था, जहां विभिन्न सांस्कृतिक और राजनीतिक पहल देखने को मिलीं।
इस वंश में पूरे भारत के पहले इस्लामी और हिंदू राजवंशों के बीच भी विवाद था, इसके बाद मुग़ल राजवंश उभरा। इनमें से एक व्यक्ति थे बाबर, जो तैमूर लंग के पोते थे और गंगा नदी की घाटी के उत्तरी क्षेत्र से आए गए विजेता चंगेज़ खान।
चंगेज़ ने खैबर को कब्ज़ा करने का निर्णय लिया और अंत में पूरे भारत पर क़ाबिज़ा कर लिया।
भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना और शासक
भारत में मुग़ल साम्राज्य कब और कैसे की गई और कितने सम्राट थे , आइए जानते है
बाबर (1526-1530)
मुग़ल इतिहास में बाबर की विशेष महत्वता होती है। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की थी और वे पहले मुग़ल सम्राट रहे हैं।
1526 में पानीपत के युद्ध में लोदी वंश को हराकर उन्होंने भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की थी।
इस युद्ध के बाद दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया और बाबर ने दिल्ली और आगरा को अपने नियंत्रण में लिया। बाबर ने भारत पर 5 बार हमला किया था। 1519 में उन्होंने यूसुफजई जाति के खिलाफ अपनी पहली जंग लड़ी, जिसमें बाबर ने बाजौर और भेरा को अपने कब्जे में कर लिया।
हुमायूं (1530-1540, 1555-1556)
हुमायूं, मुग़ल साम्राज्य का दूसरा शासक थे, जो कि 23 साल की उम्र में मुग़ल सिंहासन पर आसीन हुए थे। हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच हुई कन्नौज और चौसा की लड़ाई में, शेरशाह ने हुमायूं को पराजित कर दिया था, जिसके बाद हुमायूं भारत छोड़कर चले गए थे।
उसके बाद हुमायूं ने 1555 में सिकंदर को हराकर दिल्ली की गद्दी पुनः प्राप्त की थी। मुग़ल सम्राट हुमायूं ने ही हफ्ते में सात दिन, सात अलग-अलग रंग के कपड़े पहनने का नियम बनाया था।
अकबर (1556-1605)
हुमायूं के निधन के बाद, उनके पुत्र अकबर ने मुग़ल राजगद्दी को संभाला। 14 साल की उम्र में अकबर को मुग़ल सम्राट घोषित किया गया था, और उनके पिता के मंत्री बैरम खान ने उनका संरक्षण किया। अकबर को मुग़लों में सबसे सफल सम्राट माना जाता है।
मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में मुग़ल सम्राज्य की एक नई प्रारंभिक अवधारणा उभरी। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने उन्हें कड़ी टक्कर दी, और युद्ध में अकबर की हार तय थी, लेकिन अपनों की विश्वासघात के कारण महाराणा प्रताप उस युद्ध में हार गए थे।
इस दौरान मुग़ल साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्धीप के अधिकांश हिस्सों में अपना क्षेत्रविस्तार किया। अकबर ने पंजाब, दिल्ली, आगरा, राजपूताना, गुजरात, बंगाल, काबुल, और कंधार में अपनी साम्राज्य स्थापित की।
अकबर के शासनकाल में आगरा किला, बुलंद दरवाज़ा, फतेहपुर सीकरी, हुमायूं का मकबरा, इलाहाबाद किला, लाहौर किला, और सिकंदरा सहित कई वास्तुकला कृतियाँ निर्मित की गईं। अकबर का “दीन ए इलाही” नामक धर्म भी उनका आपने धर्म था।
जहांगीर (1605-1627)
अकबर के निधन के बाद, उनके बेटे सलीम (जहांगीर) मुग़ल साम्राज्य के शासक बने। जहांगीर के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य का क्षेत्रविस्तार किया गया, जो कि किश्ववर और कांगड़ा के अलावा बंगाल तक फैला। हालांकि, कोई बड़ी युद्ध या महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल नहीं हुई।
जहांगीर के सिंहासन पर आसीन होते ही, उनके पुत्र खुसरो ने सत्ता प्राप्त करने की इच्छा में उनके खिलाफ साजिश रची और आक्रमण किया। इसके पश्चात, जहांगीर और उनके पुत्र के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में, सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरों की मदद की, जिस पर जहांगीर ने उनकी हत्या करवा दी।
शाहजहां (1627-1658)
शाहजहां को विश्व के सात अजूबों में से एक ताजमहल के निर्माण के लिए प्रसिद्ध किया जाता है, उन्होंने अपनी प्यारी बेगम मुमताज़ महल की याद में इस सुंदर इमारत का निर्माण करवाया था। शाहजहां मुग़ल साम्राज्य के सबसे प्रमुख और प्रिय बादशाह थे,
जिन्हें अपनी विदेश नीति के लिए अन्य राज्यों के लोग सर्वोत्तम मानते थे। शाहजहां ने अपने शासनकाल में मुग़ल कालीन कला और संस्कृति को विशेष महत्व दिया, और इसलिए उनके युग को स्थापत्य कला की स्वर्णिम काल और भारतीय सभ्यता के सबसे समृद्ध काल के रूप में जाना जाता है।
तथापि, शाहजहां के जीवन के आखिरी दिनों में उनके क्रूर पुत्र औरंगज़ेब ने उन्हें आगरा किले में बंद कर दिया था।
औरंगज़ेब (1658-1707)
मुग़ल इतिहास में हिंदी में सबसे अधिक प्रसिद्ध एक नाम है औरंगज़ेब। औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहां को कई सालों तक बंदी बनाए रखने के बाद मुग़ल सिंहासन का उच्चारण सम्पन्न किया।
औरंगज़ेब मुग़ल वंश के एकमात्र ऐसे शासक थे, जिन्होंने 49 वर्षों तक भारत पर शासन किया। उनके शासनकाल में औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों पर अपनी सत्ता का विस्तार किया। औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल के दौरान कई युद्ध जीते, लेकिन वे मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के हाथों दुर्गम निकले।
बहादुर शाह प्रथम (1707-12 ई.)
बहादुर शाह प्रथम, महान मुग़ल सम्राट औरंगजेब का जयेष्ट पुत्र था, जिसका वास्तविक नाम कुतुब उद-दीन मुहम्मद मुअज्ज़म (Qutb ud-Din Muhammad Mu’azzam) था। औरंगजेब उसे शाह आलम (Shah Allam) भी कहकर बुलाता था।
अपने पिता की मौत के बाद, भारत पर शासन करने वाला वह 8वां मुग़ल शासक था और उस समय उम्र 63 वर्ष थी।
वह 5 वर्ष से ज्यादा शासन नहीं कर सका। चूँकि मुग़ल परंपरा के अनुसार कोई उत्तराधिकारी नामित नहीं किया जाता था, अतः उत्तराधिकार के लिए अक्सर खुनी संघर्ष होता था।
औरंगजेब के सबसे महत्वाकांक्षी बेटे, अकबर, अपने पिता के खिलाफ विद्रोह किया था और औरंगजेब की मृत्यु से काफी पहले निर्वासन में उसकी मृत्यु हो गई थी। मुअज्ज़म को गद्दी पर बैठने के लिए अपने भाई आलम शाह से संघर्ष करना पड़ा, जिसने खुद को शहंशाह घोषित कर दिया था।
एक सामान्य संघर्ष में आलम शाह मारा गया और 1707 में वह बहादुर शाह के नाम से मुग़ल शासन की गद्दी पर बैठा। मुअज्ज़म का दूसरा भाई मुहम्मद काम बख्श, 1709 में मारा गया।
मुहम्मद शाह (शासनकाल 1719-1748)
28 सितंबर, 1719 ईसवी में शाहजहाँ II के पुत्र रौशन अख्तर को मुहम्मदशाह नाम से गद्दी पर बैठाया गया। उनके शासनकाल में अनुप्रबंधिता और युवतियों के प्रति आकर्षण के कारण उन्हें ‘रंगीला’ कहा गया।
तूरानी दल, जो सैयद बंधुओं के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था, के नेता चिकिलिच खाँ को सैयद बंधुओं का पतन करने की खुशी में मुहम्मदशाह ने अपना प्रधानमंत्री (21 फरवरी 1722 ईसवी को) नियुक्त किया।
उनकी अनुशासन प्रियता के कारण वे दरबार में कठोर नियम लागू करना चाहते थे, लेकिन बादशाह के विलासी स्वभाव के कारण कोई सहायता प्राप्त नहीं कर सका।
अहमदशाह (1748-54 ई.)
अहमद शाह बहादुर, जिन्हें मिर्ज़ा अहमद शाह (फ़ारसी: میرزا احمد شاه) या मुजाहिद-उद-दीन अहमद शाह गाज़ी के नाम से भी जाना जाता है, चौदहवें मुग़ल सम्राट थे, जिनका जन्म सम्राट मुहम्मद शाह से हुआ था।
वह 1748 में 22 साल की उम्र में अपने पिता के बाद गद्दी पर बैठे। जब अहमद शाह बहादुर सत्ता में आए , मुग़ल साम्राज्य ढह रहा था। इसके अलावा, उनकी प्रशासनिक कमजोरी के कारण अंततः इमाद-उल-मुल्क का उदय हुआ।
आलममीर द्वितीय (1754-59 ई.)
आलमगीर द्वितीय, जहाँदारशाह का पुत्र, था जो आठवें मुग़ल बादशाह था। अहमदशाह की उतारणी के बाद, आलमगीर द्वितीय को मुग़ल वंश का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। परिचालन में उसका अनुभव नहीं था।
वह एक कमजोर व्यक्ति था और उसे अपने वज़ीर ग़ाज़ीउद्दीन इमादुलमुल्क के द्वारा नियंत्रित किया जाता था। आलमगीर द्वितीय को ‘अजीजुद्दीन’ भी कहा जाता है। वज़ीर ग़ाज़ीउद्दीन ने 1759 ई. में आलमगीर द्वितीय की हत्या करवा दी थी।
शाहआलम द्वितीय (शासनकाल 1759-1806)
आलमशाह द्वितीय, जिसे शाहआलम द्वितीय भी कहा जाता है, मुग़ल साम्राज्य के 17वें बादशाह थे। उनका असली नाम शाहज़ादा अली गौहर था।
वे 1759 ईस्वी में आलमगीर द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी पर आए। बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ इलाहाबाद की सन्धि की और उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की पेंशन पर जीवन व्यतीत की।
अकबर शाह द्वितीय (शासनकाल 1806-1837)
अकबर द्वितीय को अकबर शाह द्वितीय के नाम से भी पहचाना जाता है, वे भारत के अंतिम मुग़ल सम्राट थे। वे शाह आलम द्वितीय के दूसरे पुत्र और बहादुर शाह ज़फ़र के पिता थे। ये शाह द्वितीय के नाम से पहचाना जाता है।
जब उनके पिता शाह आलम द्वितीय दिल्ली से भाग गए थे और पूरे भारत में घूम रहे थे, तब अकबर द्वितीय ने सम्राट बनने का सपना देखा था।
1781 में उन्हें वारिस का दर्जा प्राप्त हुआ और अकबर द्वितीय को मुग़ल सम्राट का वारिस घोषित किया गया।
बहादुर शाह ज़फ़र (शासनकाल 1837-1857) मुग़ल सम्राट आखिरी सम्राट
मिर्ज़ा अबू ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फर अंतिम मुग़ल शासक थे। उन्होंने अपने पिता अकबर द्वितीय की मृत्यु के बाद, 28 सितंबर 1837 को उत्तराधिकारी का पद संभाला। वे अपने नाम में “ज़फर” शब्द का उपयोग करते थे, जिसका अर्थ होता है “विजेता”।
उन्होंने बहुत सी उर्दू कविताएँ और ग़ज़लें लिखीं। हालांकि, वे केवल नाममात्र के लिए ही शासक थे,
मुग़ल सम्राट के रूप में उनका नाम केवल इतिहास में दर्ज था और उनके पास दिल्ली (शाहजहाँबाद) पर शासन करने का ही अधिकार था। 1857 की क्रांति में उन्होंने भी हिस्सा लिया था, क्योंकि ब्रिटिश सेना ने उन्हें रंगून भेज दिया था।
ज़फर के पिता अकबर द्वितीय को ब्रिटिशों ने कैद कर लिया था और उनके पिता भी नहीं चाहते थे कि ज़फर उनका उत्तराधिकारी बने।
बल्कि अकबर शाह की बेगम मुमताज़ ने अपने बेटे को उत्तराधिकारी बनाने के लिए जिद की थी। जब ब्रिटिशों ने लाल किले पर हमला किया था, तब उन्होंने जहाँगीर को भी वहाँ से निकाल दिया था।