अधिगम किसे कहते हैं

अधिगम क्या हैं 

मानव जन्म से मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। सीखने या अधिगम से बालक का विकास अत्यधिक प्रभावित रहता है। अधिगम के द्वारा बालक नई-नई आदतें सीखता है, रिवाजों, प्रथाओं और रुढ़ियों का अनुकरण करता है। बौद्धिक कौशल का विकास भी अधिगम के द्वारा ही होता है। अधिगम की यह प्रक्रिया जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। मानव का विकास अधिगम द्वारा होता है। इसका आधार परिपक्वता होता है।

मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति कुछ मूल-प्रवृत्तियाँ लेकर जन्म लेता है तथा उन मूल-प्रवृत्तियों की तृप्ति अधिगम पर निर्भर करती है। अधिगम के इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप ही संसार का यह विकास संभव हो सकता है। अतः सीखने की यह प्रक्रिया बहुत ही विस्तृत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करने से पहले यह जानना, अति आवश्यक है कि सीखना या अधिगम क्या है ? सीखने की विशेषताएँ क्या है ? सीखने के सिद्धान्त कौन -कौन से है ? इत्यादि।

(A) अर्थ एवं परिभाषाएँ- विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम की अलग-अलग -दृष्टिकोणों से व्याख्या की है तथा विभिन्न परिभाषाएँ दी हैं। व्यवहारवादियों के अनुसार अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन ही सीखना या अधिगम है। बच्चा जन्म से ही अपने वातावरण से अनुभव ग्रहण करके अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है।

सम्पूर्णवाद या गैस्टालट दृष्टिकोण के अनुसार सीखने का आधार ‘सम्पूर्ण ढांचें’ का अवलोकन करके ज्ञान प्राप्त करना है। सम्पूर्ण स्थिति के प्रति क्रिया करना ही सीखना हैं |

इसी प्रकार होरमिक दृष्टिकोण लक्ष्य केन्द्रित स्वरूप पर जोर देता है अर्थात सीखना लक्ष्य को सामने रखकर किया जाता है।

कर्ट लेविन ने सीखने का फील्ड दृष्टिकोण प्रस्तुत किया तथा यह स्पष्ट  किया की  सीखना परिस्थिति का प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक संगठन है और सीखने में प्ररेणा की महतवपूर्ण भूमिका  एवं स्थान है।

वडबर्थ के अनुसार, ‘अधिगम नए ज्ञान और नई अनुक्रियाओं को ग्रहण करने की एक  प्रक्रिया है।’

क्रो एवं क्रो ने भी अधिगम को आदतों, ज्ञान एवं अभिवृत्तियों को ग्रहण करना  बताया है।

जेपी गिलफोर्ड ने व्यवहार से व्यवहार में परिवर्तन को ही अधिगम माना है।

क्रानबैक ने कहा है कि अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार परिवर्तन ही अधिगम हैं |

पैवलव ने अनुक्रिया द्वारा आदतों के निर्माण को ही अधिगम माना है।

गेट्स के अनुसार, ‘सीखना अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध है।’ 

किंगजले तथा गैरी के अनुसार, ‘शोषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यवहार  की अभ्यास या ट्रेनिंग द्वारा उत्पत्ति होती है या उसमें परिवर्तन होता है।

कालविन के अनुसार, ‘पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभव द्वारा हुए परिवर्तन को। अधिगम कहते है।

जी .डी. बाज के अनुसार, ‘अधिगम एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदतें ज्ञान एवं दृष्टिकोण सामान्य जीवन की माँगों की पूर्ति के लिए अर्जित करता है।

प्रेसी ने कहा है कि ‘अधिगम एक ऐसा अनुभव है जिसके द्वारा कार्य में परिवर्तन या समायोजन होता है तथा व्यवहार की नई विधि प्राप्त होता है।’ ।

सीई स्किनर के शब्दों में, ‘व्यवहार के अर्जन में प्रगति की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण के परिणामस्वरूप अधिगम के सम्बन्ध में कुछ तथ्य स्पष्ट होते हैं, जैसे—

(i) अधिगम व्यवहार परिवर्तन है। 

(ii) अधिगम व्यवहार का संगठन है। 

(iii) अधिगम नवीन प्रक्रिया की पुष्टि है।

परन्तु वास्तविकता यह है कि व्यवहार परिवर्तन, व्यवहार संगठन तथा पुष्टिकरण में कोई भी एक कारण अधिगम के लिए पूरी तरह उत्तरदायी नहीं है। समय के अनुसार भी अधिगम का अर्थ स्पष्ट किया गया है, जैसे

(i) प्राचीन मत के अनुसार अधिगम एक व्यापक शब्द है। इसमें बच्चों को प्रभावित करने वाली सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है। बच्चे के बड़े होने की प्रक्रिया को साथ-साथ उसके मस्तिष्क का भी विकास होता रहता है जिसके परिणामस्वरूप उसके व्यवहार में परिवर्तन आते रहते है। अनभवों से बच्चा सीखता रहता है

(ii) इसके पश्चात् मनविज्ञानिक दृष्टि से अधिगम की व्याख्या उद्दीपन-प्रक्रिया सम्बन्ध के रूप में की गई। उसके अनुसार उद्दीपन और अनुक्रिया में सम्बन्ध का स्थापित होना ही अधिगम कहलाता है।

 इस प्रकार अधिगम के सम्बन्ध में कुछ और भी तथ्य हमारे समक्ष आता है।

(i) अधिगम एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक के व्यवहार में परिवर्तन आते हैं। 

(ii) अधिगम का अनुमान व्यवहार में परिवर्तनों के आधार पर ही लगाया जाता है।

(iii) ये परिवर्तन किसी भी दिशा में अर्थात् घनात्मक या निषेधात्मक हो सकते हैं।

(iv) अधिगम के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तन स्थाई होते हैं।

(v) व्यवहार में होने वाले परिवर्तन अभ्यास के फलस्वरूप होते हैं।

(vi) अधिगम को एक मानसिक प्रक्रिया भी कहा जा सकता है।

(B) अधिगम की विशेषताएं-  अधिगम या सीखने की प्रक्रिया की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं

1 . अधिगम निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है – अधिगम की प्रक्रिया माँ के गर्भ से पारम्भ हो जाती है। जन्म होने के पश्चात् बच्चा वातावरण से प्राप्त अनुभवों के द्वारा लता अर्जित करता है। अतः अधिगम हर प्रकार से अर्थात् औपचारिक – अनौपचारिक से तथा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जीवन भर चलता ही रहता है। अधिगम को उत्पादन कर उसे प्रक्रिया माना जाता है तथा प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति में ज्ञान, कौशल, आदतों, अभिवृतियो तथा अभिरुचियों का विकास होता रहता है। अधिगम का परिणाम ज्ञान के संचय के रूप में होता है तथा यह संचय जीवन भर होता है।

2. अधिगम व्यवहार में परिवर्तन- सीखने की प्रक्रिया का परिणाम व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन के रूप में प्राप्त किया जाता है। सीखना किसी भी प्रकार का क्यों न हो, परिणाम वही होगा अर्थात् व्यवहार में परिवर्तन। यह परिवर्तन किसी भी रूप में हो सकता है। लेकिन सीखने की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना ही पड़ेगा कि ये परिवर्तन वांछित दिशा तथा वांछित रूप में हो अर्थात् ये परिवर्तन सकारात्मक दिशा में हो।

3.अधिगम सार्वभौमिक प्रक्रिया-  अधिगम प्रक्रिया एक सार्वभौमिक प्रक्रिया मानी गई है। क्योंकि सीखना किसी एक देश, जाति या धर्म का ही अधिकार नहीं है। यह तो सभी के लिए है, हर स्थान के लिए है, हर जाति तथा हर धर्म के लिए है। हर व्यक्ति सीखने की पूरी क्षमता रखता है। अवसरों की आवश्यकता रहती है। सीखने में जो अन्तर दिखाई देता है वह अवसरों में भिन्नता के कारण ही होता है।

4.अधिगम समायोजन की प्रक्रिया है-  अधिगम का समायोजन में विशेष योगदान होता है। जन्म के समय बच्चा शत-प्रतिशत दूसरों पर आश्रित होता है। लेकिन समय के साथ-साथ उसे अपनी आन्तरिक अनुक्रियाओं को बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार ढालना पड़ता है। यह सर्वप्रथम अपने वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करता है लेकिन यह समायोजन का आधार उसका अधिगम ही होता है।

5. अधिगम उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्य केन्द्रित है अधिगम हमेशा लक्ष्य केन्द्रित एवं उद्देश्यपूर्ण होता है। यदि हमारे पास कोई उद्देश्य और लक्ष्य नहीं है तो अधिगम प्रक्रिया का प्रभाव किसी भी रूप में दिखाई नहीं देगा। सीखने की प्रक्रिया के माध्यम से हम किसी पूर्व-निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ सकते है। जैसे-जैसे हम सीखते जाते हैं, वैसे-वैसे हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं।

6. अधिगम विकास की प्रक्रिया हैअधिगम किसी भी दिशा में हो सकता है  वांछित या अवांछित । लेकिन हमारा सम्बन्ध तो व्यक्ति के वांछित दिशा में विकास से होता है। कोई बालक यदि चोरी करना या जेब काटना सीखता है तो भी अधिगम है लेकिन यह अवांछित है। समाज ऐसा विकास कभी नहीं चाहेगा। अत: अधिगम को हमेशा विकास के दृष्टिकोण से ही देखा जाता है।

7. अधिगम अनुभवों की नई व्यवस्था है-  अधिगम या सीखने का आधार है—नवीन अनुभव ग्रहण करना। उन्हें नये अनुभवों के परिणामस्वरूप ही व्यवहार में परिवर्तन आते हैं। पुराने अनुभवों के आधार पर नये नये अनुभव प्राप्त होते है तथा एक नई व्यवस्था जन्म लेते है।

8. अधिगम क्रिया और वातावरण का परिणाम- अधिगम प्रक्रिया के लिए वातावरण के साथ अंत:क्रिया करण मूलरूप से अनिवार्य है। बिना इस अंतःक्रिया के अधिगम प्रक्रिया का कोई परिणाम संभव नहीं हो सकता। वातावरण के साथ बच्चों की अंतःक्रिया जितनी अधिक होगी, उतना ही उन बच्चों का अधिगम होगा। अत: बिना किसी क्रिया एवं अन्त:क्रिया के अधिगम का कोई परिणाम नहीं हो सकता। यही अन्त:क्रिया बच्चों को अनुभव प्रदान करती है तथा उन्हीं अनुभवों के परिणामस्वरूप बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं।

9. अधिगम शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक- शिक्षा-अधिगम परिस्थितियों में शिक्षण-अधिगम के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए। अधिगम प्रक्रिया का सहारा लेना पड़ता है तथा अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी ज्ञान, सूझबूझ, रुचियाँ, कुशलताएँ तथा दृष्टिकोणों का विकास किया जा सकता है। इन्हें अर्जित करने के पश्चात् ही व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन अपेक्षित होता है अर्थात् शिक्षण अधिगम को प्राप्त करने में अधिगम प्रक्रिया ही मुख्य साधन है।

10. अधिगम का स्थानान्तरण होता है- किसी एक परिस्थिति में अर्जित किया गया अधिगम दूसरी अन्य परिस्थिति में स्थानान्तरित होने में सक्षम होता है। एक स्थिति में अर्जित ज्ञान दूसरी अन्य परिस्थिति में ज्ञान की प्राप्ति के लिए सहायक सिद्ध होता है। इसी को अधिगम का स्थानान्तरण कहते हैं। कई बार यह पूर्व अर्जित ज्ञान नव-ज्ञान को अर्जित करने में बाधा भी पैदा कर सकता है।

11. अधिगम का सम्बन्ध व्यक्तिगत और सामाजिक आवश्यकताओं से- व्यक्ति सामाजिक प्राणी है तथा समाज का अभिन्न अंग है। वह समाज में रहकर ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है। हर व्यक्ति की विभिन्न आवश्यकताएँ होती हैं जोकि शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक या धार्मिक हो सकती है। लेकिन सभी व्यक्तियों की सभी आवश्यकताएँ कभी भी पूर्ण नहीं होती। ऐसी स्थिति में वह अपनी-अपनी आवश्यकताओं को नियंत्रित करने का प्रयास करता हैं। इसी नियंत्रण करने की प्रक्रिया को। ‘परिस्थितियों के अनुकूल ढालना’ कहते हैं। अत: अधिगम प्रक्रिया व्यक्ति और आवश्यकताओं में संतुलन पैदा करती है। सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का अधिगम प्रक्रिया प्रभावी नहीं रहती।

12.अधिगम व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक-  हर व्यक्ति व्यक्तित्त्व का संतुलित तथा सर्वांगीण विकास चाहता हैं। संतुलित और सर्वांगीण विकास से अधिक प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

13. अधिगम अनसंधान करता हैं अनुसंधान करना भी एक प्रकार अधिगम होता है। अनुसंधान के दौरान व्यक्ति विभिन्न प्रयास करता है तथा कई क्रियाएँ करने के पश्चात् किसी एक परिणाम पर भी पहुंचता है। इस दृष्टि से अनुसंधान करना भी अधिगम है।

14. अधिगम चेतन और अचेतन अनुभव हैं – अधिगम चेतन और अचेतन  अनुभवों द्वारा निर्धारित होता है। वह सीखने वाले व्यक्ति द्वारा जानबूझकर या अनजाने में अर्जित किया जाता है।

15. अधिगम द्वरा व्यहार के सभी पक्ष प्रभावित-  अधिगम व्यवहार के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है, इनमें कौशल, ज्ञान, दृष्टिकोण, व्यक्तित्त्व, अभिप्रेरणा, भय, शिष्टाचार इत्यादि शामिल हैं।

16. अधिगम जीवन की मूलभूत प्रक्रिया हैअधिगम को जीवन की मूलभूत प्रक्रिया है। इसके बिना जीवन का अस्तित्त्व ही संभव नहीं है और न ही किसी प्रकार की प्रगति  संभव है। यह सभ्यता की प्रगति के लिए आधार पर कार्य करता है।

17. अधिगम पूर्ण परिस्थिति के प्रति सम्पूर्ण प्रतिक्रिया- अधिगम सम्पूर्ण परिस्थिति के पूर्ण प्रतिक्रिया है अर्थात् वह किस परिस्थिति के बारे में किस प्रकार का प्रतिक्रिया  प्रस्तत करता है – यह उसका अधिगम कहलाएगा।

18. अधिगम सक्रिय तथा सृजनात्मक- अधिगम की प्रक्रिया सदा सक्रिय होती है। सीखने वाला स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता हैं | अतः अधिगम सक्रिय होता है। इसी प्रकार अधिगम को सृजनात्मक माना जाता है। 

19 . अधिगम विवेकपूर्ण है- अधिगम को एक मैकेनिकल प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता हैं | यह तो एक विवेकपूर्ण कार्य है। बिना किसी चिंतन के कुछ भी नहीं सीखा जा सकता है और न ही किस कार्य में सफलता मिलती है। अतः इस कार्य को बड़ी शीघ्रता से सीखा जा सकता है जिसमें बुद्धि का प्रयोग किया जाये।

20. अधिगम उद्दीपन और अनुक्रिया में सम्बन्ध- अधिगम प्रायः उद्दीपन और अनुक्रिया में सम्बन्ध होता है। किसी कार्य को सीखा हुआ व्यक्ति उसे कहते हैं जब वह उद्दीपन उस कार्य के अनुकूल प्रतिक्रिया करते हैं। अधिगम द्वारा व्यक्ति पर्यावरण सम्बन्धी तथा जीवन के अन्य पक्षों से जुड़े हुए उद्दीपनों के प्रति अनुकूल प्रतिक्रियाएँ करना सीखता है।

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक –  अधिगम को प्रभावित करने वाले मख्य रूप से पाँच कारक होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षार्थी से सम्बन्धित कारक, 
  2. शिक्षक से सम्बन्धित कारक, 
  3. अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित कारक,
  4. पाठ्य-वस्तु से सम्बन्धित कारक,
  5. वातावरण से सम्बन्धित कारक

1. शिक्षार्थी से सम्बन्धित कारक- बालक जब विद्यालय में प्रविष्ट होता है तो घरेलू वातावरण का प्रभाव उस पर छाया रहता है। उसके मन में अनेक जिज्ञासाएँ उठती हैं, जिन्हें वह पूरा करना चाहता है। नवीन वातावरण के साथ उसे अपने को समायोजन करना होता है। ऐसी परिस्थिति में अधिगम क्रिया अनेक कारकों से प्रभावित होती है, जो निम्नलिखित है – 

(i)  सीखने की इच्छा

(ii)  शैक्षिक पृष्ठभूमि

(iii)  शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य

(iv)  परिपक्तवा 

(v)  अभिप्ररेणा

(vi)  सीखने का समय तथा अवधि ,

(vii)  बुद्धि

(viii)  अधिगम प्रक्रिया

2. शिक्षक से सम्बन्धित कारक- अधिगम को प्रभावित करने वाले शिक्षक से सम्बन्धि कुछ कारक निम्नलिखित हैं – 

(i) विषय-वस्तु का ज्ञान 

(ii) शिक्षक का व्यवहार

 (iii) मनोविज्ञान का ज्ञान 

(iv) शिक्षण विधि

 (v) व्यक्तिगत भिन्नता का ज्ञान 

(vi) शिक्षक का व्यक्तित्त्व

(vii) शिक्षार्थी केन्द्रित शिक्षा

 (viii) समय सारणी 

(ix) पाठ्य सहगामी क्रियाएँ

 (x) अनुशासन 

3.अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित कारक :

 (1) सक्रिया या निष्क्रिय विधि 

(ii) सम्पूर्ण या खण्ड विधि

 (ii) उप विषय या सकेन्द्रीय विधि 

(iv) संकलित या वितरित विधि

 (v) व्याख्यान या प्रोजेक्ट विधि।

4. पाठ्य वस्तु से सम्बन्धित कारक- अधिगम को प्रभावित करने वाले पाठ्य वस्तु से सम्बन्धित कुछ मुख्य कारक निम्नलिखित हैं

(i) विषय-वस्तु की प्रकृति

 (ii) विषय-वस्तु का आकार

 (ii) विषय-वस्तु का क्रम 

(iv) उदाहरण की प्रस्तुतीकरण 

(v) भाषा शैली

 (vi) श्रव्य-दृश्य सामग्री

 (vii) रुचिकर विषय वस्तु 

(viii) विषय-वस्तु की उद्देश्यपूर्णता 

(ix) विषय-वस्तु की संरचना

(x) विभिन्न विषयों की कठिनाई स्तर

5. वातावरण से सम्बन्धित कारक- अधिगम को प्रभावित करने वाले वातावरण से। सम्बन्धित कुछ मुख्य कारक निम्नलिखित हैं- 

(i)  वंशानुक्रम प्रभाव 

(ii)  वातावरण का प्रभाव 

(iii)  शिक्षा के औपचारिक या अनौपचारिक साधन 

(iv)  परिवार का वातावरण

(v)  कक्षा का भौतिक वातावरण

(vi)  मनोविज्ञान वातावरण

(vii)  सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण

 (viii)  सम्पूर्ण परिस्थिति 

इस प्रकार संक्षेप में अधिगम को प्रभावित करने वाले अन्य कारक निम्नांकित हैं

1. शारीरिक कारक-  शारीरिक कारकों में ज्ञानेन्द्रियाँ-दृष्टि, श्रवण, स्वाद, सूंघना तथा स्पर्श अधिगम हेतु आधा प्रदान करते है। इसी प्रकार आदत, संवेग, रुढ़िवादिता, अन्धविश्वास, परिपक्वता भी अधिगम को प्रभावित करते हैं।

2.मनोवैज्ञानिक कारक- मनोवैज्ञानिक कारकों में इच्छा, प्रेरणा, बुद्धि, रुचि आदि अधिगम के महत्त्वपूर्ण कारक है।

3. पर्यावरणीय कारक- विषयवस्तु की प्रकृति, अधिगम विधियाँ, अभ्यास, शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया तथा परिणाम का ज्ञान अधिगम के महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय कारक माने जाते हैं।

4.पूर्व अधिगम-  प्रारम्भ में किये गये अधिगम बाद में किये जाने वाले अधिगम को प्रभावित करते हैं। पूर्व अधिगम को अचेतन में संचित रखने एवं आवश्यकता पड़ने पर उसे चेतन मन में लाने से अधिगम प्रभावशाली बन सकता है।

5.विस्मरण- विस्मरण एक नकारात्मक क्रिया है। विस्मरण से अधिगम का ह्रास होने लगता है। बाधा, दमन, अनभ्यास, रुचि एवं इच्छा का अभाव, विषयवस्तु की प्रकृति एवं मात्रा, सीखने की दोषपूर्ण विधि, संवेगात्मक असंतुलन विस्मृति के उत्तरदायी होते हैं।

6.विषय वस्तु- विषय-वस्तु का कम होना विस्मरण को कम करता है। इसके साथ ही पूरे पाठ का स्मरण करने के बाद उसका धारण किया जाना अनावश्यक है। विषय-वस्तु पुनरावृत्ति तथा स्मरण के नियमों का प्रयोग अधिगम हेतु आवश्यक है।

7.थकान –  थकान से अभिप्राय है—कार्य करने में शक्ति के पूर्ण व्यय के कारण कार्य करने की कम कुशलता या योग्यता । थकान शारीरिक तथा मानसिक दोनों होती है। ये दोनों प्रकार की थकान व्यक्ति की अधिगम की क्रिया को प्रभावित करते हैं।

8. अभिप्रेरणा- अधिगम के लिए अभिप्रेरणा एक अनिवार्य तत्त्व है। यह अधिगम की गुणवत्ता तथा मात्रा को प्रभावित करता है। अधिगम को गति प्रदान करने तथा उसे सफल बनाने में अभिप्रेरणा की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। दूसरे शब्दों, में हम कह सकते हैं कि प्रभावशाली अधिगम के लिए अभिप्रेरणा अत्यन्त आवश्यक हैं।

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