वैदिक काल एवं मुस्लिम काल में नारी शिक्षा क्या हैं ?

 

वैदिक काल में नारी शिक्षा-

      प्रारंभिक वैदिक काल पर नजर डालने से ज्ञात होता है कि स्त्रियों को प्रत्येक प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने का समान अधिकार प्राप्त था । वेदों में ‘स्त्री’ को पुरुष जाति का पूरक माना जाता था। उन्हें पुरुषों को भाँति वेदों का अध्ययन करने की पूरी स्वतंत्रता प्राप्त थी और वे पुरुषों के साथ-साथ यज्ञ में भाग लेती थीं। इस काल की घोषा, मैत्रेयी, गार्गी, अपाला, श्विवरा, शकुन्तला और अनुसुइया विदुषी स्त्रियाँ थीं ।

ज्ञातव्य है कि उत्तरोत्तर शिक्षा के स्तर में निम्नता आती गई। उत्तर- वैदिक काल में वर्णानुसार शिक्षा दी जाने लगी । शूद्र वर्ण की स्त्रियों को तो उच्च शिक्षा का अधिकार से वंचित कर दिया गया जिससे उनकी शिक्षा में एक तरह से विराम-सा लग गया। डॉ० ए०एस० अल्तेकर ने अपने शोध के परिणामस्वरूप यह बताया कि ” धर्मशास्त्र युग ( 200 ई०पू० से 500 ई०) में बालिकाओं के लिए विवाह की उम्र को कम कर 12 वर्ष तक कर दिया गया और स्त्रियों के लिए वेदाध्ययन का निषेध कर दिया गया। इनसे उनकी शिक्षा को प्रमुख आघात लगा ।”

उस समय स्त्रियों को अलग से शिक्षा प्रदान करने के लिए गुरुकुल का अभाव था । परिणामतः सामान्य परिवारों की बालिकाओं को उच्च शिक्षा से विमुख होना पड़ा, मात्र गुरुओं की पुत्रियाँ, राजघरानों और राज्यों में उच्च पदस्थ व्यक्तियों की पुत्रियाँ ही शिक्षा ग्रहण कर सकती थीं । अतः स्पष्ट है कि प्रारंभ में स्त्रियों की शिक्षा पर पूर्ण ध्यान दिया जाता था, लेकिन, उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की शिक्षा में गिरावट आ गयी ।

मुस्लिम काल में नारी शिक्षा-

मध्यकालीन भारतीय मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में पर्दा प्रथा प्रचलित होने के कारण स्त्रियों की पूर्णरूपेण विकास नहीं हो पाया था। छोटी उम्र की बालिकाएँ मकतब में जाकर प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करती थी । लेकिन, इनके लिए उच्च शिक्षा का प्रावधान मदरसों में नहीं था । इन्हें शिक्षा की व्यवस्था अपने निवास पर ही करनी पड़ती थी । इसलिए, उच्च शिक्षा धनी एवं राजसी परिवारों तक संकुचित थी । मुस्लिम काल में स्त्रियों की शिक्षा का कोई संतोषजनक प्रावधान नहीं था । इसके बावजूद शाही खानदानों में व्यक्तिगत शिक्षा के कारण अनेक विदुषी स्त्रियाँ पैदा हुईं।

उदाहरणार्थ- सुल्तान इल्तुतमिश की पुत्री रजिया सैनिक विद्या व राजकाज में निपुण थी। औरंगजेब की बहन जहाँआरा बेगम तथा पुत्री फारसी की कवयित्री थी । बाबर की पुत्री गुलबदन ने हुमायूँनामा की रचना की थी । ये सब राजसी परिवार तक ही सीमित था । आम महिलाओं को उच्च शिक्षा के अवसर बिल्कुल न के बराबर थे।

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