वायुमंडल क्या हैं ?

 

                                         1    वायुमंडल

          वायु का साम्राज्य पृथ्वी के चारों ओर है और इसे हम ‘वायुमंडल’ के नाम से जाते हैं । यह विभिन्न गैसों का मिश्रण है। इसके द्रव्यमान का 99% पृथ्वीतल से 32 किलोमीटर की ऊँचाई तक ही मिलता है। इससे स्पष्ट है कि वायुमंडल का विस्तार ऊपर की ओर भले ही हजारों किलोमीटर तक हो, पर इसका महत्त्वपूर्ण भाग पृथ्वी के निकट ही स्थापित है। भारी और आवश्यक गैसों का जमाव पृथ्वीतल से 5 किलोमीटर की ऊँचाई तक ही सीमित है।

         ऊँचाई की ओर बढ़ने पर हल्की गैसों (जैसे—ओजोन, हीलियम, नियोन, क्रिपटोन, हाइड्रोजन) की मात्रा बढ़ने लगती है। पृथ्वीतल के निकट की वायु में भारी गैसों के अतिरिक्त जलवाष्प, धुआँ और धूलकण मिलते हैं । वाष्पन क्रिया (evaporation) द्वारा पृथ्वी के जलाशयों तथा पेड़-पौधों से वायुमंडल में जलवाष्प पहुँचता रहता है। संवहन क्रिया (convection) द्वारा पृथ्वी के धूलकण वायुमंडल में अधिक ऊँचाई तक पहुँच जाते हैं। ज्वालामुखी विस्फोट से भी वायुमंडल में धूलकण पहुँच जाते हैं। नमक, कार्बन आदि भी सूक्ष्म रूप में मिला करते हैं।

वायुमंडल को पाँच परतों में बाँटा गया है— (1) क्षोभमंडल, (2) समतापमंडल, (3) ओजोनमंडल, (4) आयनमंडल, और (5) बहिमंडल ।

1 . क्षोभमंडल (Troposphere) – यह परत पृथ्वी से सटी हुई है, जिसकी औसत ऊँचाई ध्रुवों पर 8 किलोमीटर और विषुवत रेखा पर 18 किलोमीटर है। वायुमंडल की सबसे घनी परत यही है। इसी परत में सभी मौसमी परिवर्तन हुआ करते हैं। इसमें सर्वत्र एक-सा तापमान नहीं मिलता। ऊँचाई की ओर बढ़ने पर तापमान में कमी आने लगती है (प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1°C की दर से, जिसे वायुमंडलीय तापमान की ‘क्षति – दर’ कहते हैं)। मेघ गर्जन, बिजली की चमक, आँधी-तूफान, वर्षा, हिमपात आदि मौसमी घटनाएँ क्षोभमंडल में ही घटित होती हैं । इस परत में वायु की दशाएँ प्रतिक्षण बदलती रहती हैं।

2 . समतापमंडल (Stratosphere) – यह परत क्षोभमंडल के ऊपर मिलती है, 32 किलोमीटर की ऊँचाई तक। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच एक-दो किलोमीटर मोटी परत ‘क्षोभ-सीमा’ कहलाती है जो दोनों मंडलों के बीच सीमा-स्तर का काम करती है। क्षोभ-सीमा में क्षोभमंडल का मौसमी उपद्रव कम हो जाता है और समतापमंडल अपना लक्षण दिखाने लगता है। समतापमंडल में वायु शांत हो जाती है, तापमान का वितरण सर्वत्र एक-सा हो जाता है, जलवाष्प और धूलकण नजर नहीं आते और कोई मौसमी हलचल नहीं हुआ करती ।

3 . ओजोनमंडल (Ozonosphere) – यह परत समतापमंडल के ऊपर मिलती है, 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक अर्थात् इसकी मोटाई (80-32 ) 48 किलोमीटर है। समतापमंडल और ओज़ोनमंडल के बीच ‘समताप-सीमा’ मिलती है जो संक्रमण-सम का काम करती है। इस सीमा में तापमान धीरे-धीरे बढ़ना आरंभ करता है। ओजोनमंडल में ओजोन गैस की प्रधानता के कारण गर्मी बढ़ती है, क्योंकि यह सूर्य से आनेवाली पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) को अवशोषित कर लेती है, सोख लेती है। शिव की तरह गरलपान कर यह परत पृथ्वी को, पृथ्वी पर मिलनेवाले समस्त जीव-जंतुओं को सूर्य की भयंकर गर्मी से बचाती है।

           यह परत न रहती तो हमारा अस्तित्व ही न रहता, हम सब जल-भुनकर साफ हो गए होते। वैज्ञानिकों का कहना है कि ओजोनमंडल में छेद हो रहे हैं जिससे कुछ पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की ओर आने लगी हैं, फलस्वरूप पृथ्वी पर भयंकर गर्मी का अनुभव किया जाने लगा है, लोग त्वचा कैंसर आदि रोगों से आक्रांत होने लगे हैं तथा कृषि उपज को नुकसान पहुँच रहा है। विश्व की 5 अरब से भी अधिक पहुँची हुई जनसंख्या, औद्योगिक और तकनीकी विकास के बल पर खुलते जा रहे दैत्याकार कल-कारखाने, क्लोरो फ्यूरोकार्बन का बढ़ता उपयोग, परमाणु विस्फोट आदि ओजोनमंडल को कमजोर बनाने में लगे हैं। इस गंभीर समस्या से आँखें नहीं मूँदी जा सकतीं।

4 . आयनमंडल (Ionosphere) – यह परत ओजोनमंडल के ऊपर है और 650 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। इसमें आयन और इलेक्ट्रॉन मिलते हैं। ये विद्युत् आवेशित कण हैं। इनसे पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें टकराकर विभिन्न रंगों की ज्योतियाँ उत्पन्न करती हैं, जो ध्रुवीय क्षेत्रों से देखी जा सकती हैं। इन्हें हम ‘ध्रुवीय ज्योतियाँ (aurora borealis and aurora austrialis) कहते हैं। इस परत की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि हमारी ध्वनि तरंगें इसके पार नहीं जा सकतीं, वे इस परत से परावर्तित होकर लौट आती हैं, अतः रेडियो या टेलीवीजन पर हम ध्वनि सुन पाते हैं।

5 . बहिर्मंडल (Exosphere ) — यह वायुमंडल की सबसे ऊपरी या बाहरी परत जो आयनमंडल के ऊपर विस्तृत है। यहाँ वायु का अभाव है और ऊँचाई के साथ तापमान में वृद्धि होती चली जाती है। इस परत में हीलियम और हाइड्रोजन गैसों की प्रधानता है। इसी परत या मंडल से अंतरिक्ष आरंभ होता है। इस परत की विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। अभी तो हमने अंतरिक्षयुग में प्रवेश ही किया है।

       वायुमंडल का भौतिक वातावरण के सृजन में महत्त्वपूर्ण हाथ है। इसमें उपस्थित ऑक्सीजन समस्त प्राणियों को जीवन प्रदान करता है। इसकी मोटी तह सूर्य के भीषण ताप से हमारी रक्षा करती है। साथ ही, पृथ्वी द्वारा विकिरित ऊष्मा को यह संतुलित रखता है। संवहन द्वारा तप्त वायु ऊपर उठती है। आर्द्रता, बादल-निर्माण और जलवर्षा के लिए वायुमंडल ही उत्तरदायी है। वायुमंडलीय दशाओं में भिन्नता लाकर यह विविध प्रकार की जलवायु भी उत्पन्न करता है। जलवायु में अंतर पड़ने के कारण वनस्पति और जीव-जंतुओं में भी अंतर आ जाता हैं तथा लोगों के क्रियाकलापों में प्रादेशिक भिन्नता पाई जाती हैं |

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