बौद्धकालीन व्यावसायिक शिक्षा — बौद्ध शिक्षा धर्म –प्रधान थी| किन्तु , बौद्ध साहित्य मेंहमें इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं की भिक्षुओं और जनसाधारण को व्यावसायिक शिक्षा की अत्युत्तम सुविधाएँ प्राप्त थीं। इस शिक्षा के प्रमुख अंगों का प्रकाश विश्लेषण –
1 . हस्तशिल्पों की शिक्षा – “महावाग्ग में हमें एक स्थान पर इस बात का उल्लेख मिलता है कि बौद्ध काल में भिक्षुओं को अपने मठों में विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्पों की शिक्षा प्रदान की जाती थी । उदाहरणार्थ, उनको सूत कातने, कपड़ा बुनने और वस्त्र सीलने की शिक्षा दी जाती थी ताकि वे वस्त्र सम्बन्धी अपनी आवश्यकताओं की स्वयं पूर्ति कर सकें ।
2 . लाभप्रद व्यवसायों की शिक्षा—बौद्ध धर्म के अनुयायियों और जनसाधारण के लिए अनेक लाभप्रद व्यवसायों की शिक्षा की सुन्दर व्यवस्था थी, ताकि वे अपनी जीविका का सरलता से उपार्जन कर सकें । इस प्रकार के कुछ व्यवसाय थे— कृषि, वाणिज्य, लेखन- कला, पशुपालन और हिसाब-किताब ।
3 . भवन निर्माण, कला, मूर्तिकला व चित्रकला की शिक्षा- बौद्धकला में भवन-निर्माण कला की विशिष्ट शिक्षा उपलब्ध होने के कारण इस कला का आश्चर्यजनक विकास हुआ। इस कला के बौद्ध बिहार और स्तूप एवं नालन्दा और विक्रमशिला का विशाल इमारतें – भवन निर्माण-कला की सजीव प्रमाण हैं। इस काल के साथ-साथ मूर्तिकला और चित्रकला की भी, शिक्षा की सुविधाओं के कारण, असाधारण प्रगति हुई। अजन्ता और एलोरा भित्ति, मूर्तिकला और चित्रकला इस प्रगति के आज भी साक्षी हैं ।
4 . प्राविधिक व वैज्ञानिक शिक्षा- हमें ‘मिलिन्द पान्हा’ में बौद्ध कला में प्रचलित 19 ‘सिप्पाओं’ अर्थात् ‘शिल्पों’ का वर्णन मिलता है। इनका सम्बन्ध प्राविधिक और वैज्ञानिक शिक्षा से था। इनमें से निम्नांकित 10 की शिक्षा तक्षशिला में प्रदान की जाती थी- आखेट, चिकित्सा, धनुर्विद्या, इन्द्र-जाल, हस्ति – ज्ञान भविष्य कथन, शारीरिक लक्षणों का अर्थ, मृत व्यक्तियों को जीवित करने का मंत्र, सब पशुओं की बोलियाँ समझने का ज्ञान और इन्द्रिय-सम्बन्धी सब कार्यों पर नियंत्रण करने की कला ।
इस प्रकार जैसा कि डॉ० आर० के मुखर्जी ने लिखा है, “सिप्पाओं के ज्ञान अर्थात् प्राविधिक और वैज्ञानिक शिक्षा की माँग, सामान्य शिक्षा या धार्मिक अध्ययन की माँग से कम नहीं थी । “
5 . चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा – बौद्ध -काल में चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा का अभूतपूर्व विकास हुआ। इस शिक्षा का मुख्य केन्द्र तक्षशिला विश्वविद्यालय था और चिकित्साशास्त्र अवधि 7 वर्ष की थी । जीवक, चरक, धन्वन्तरि आदि महान् आयुर्वेदाचार्य, बौद्ध युग की ही देन हैं।