आकलन का क्या उद्देश्य हैं

 

     आकलन का उद्देश्य

 आकलन का उद्देश्य

   आकलन का उद्देश्य सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं का चुनाव एवं सामग्री का सुधार करना है और उन लक्ष्यों पर पुनर्विचार करना है जो विद्यालयों के विभिन्न चरणों के लिए तय किये गए हैं। आकलन के द्वारा यह किया जाता है कि अधिगमकर्त्ता की क्षमता किस हद तक विकसित हुई ? यह अलग से न कर दैनिक गतिविधियों एवं अभ्यास के क्रम में किया जाता है ।

  आकलन के माध्यम से सीखने में आनेवाली कठिनाइयों का पता लगाया जाता है ताकि उचित समाधान भी किया जा सके। इसमें अंकन एवं ग्रेड दोनों का उपयोग किया जा सकता है।

आकलन और मूल्यांकन

     भारतीय शिक्षा में मूल्यांकन शब्द परीक्षा, तनाव और दुश्चिता से जुड़ा हुआ है । पाठ्यचर्या की परिभाषा और नवीनीकरण के सभी प्रयास विफल हो जाते हैं, अगर वे स्कूली शिक्षा प्रणाली से जुड़े जमाए मूल्यांकन और परीक्षा तंत्र के अवरोध से नहीं जूझ सकते । हमें परीक्षा के उन दुष्प्रभावों की चिंता है, जो सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को सार्थक बनाने और बच्चों के लिए आनंददायी बनाने के प्रयासों पर पड़ते हैं। वर्तमान में बोर्ड की परीक्षाएँ स्कूली वर्षों में होने वाले हर आकलन और हर तरह के परीक्षण को नकारात्मक रूप से ही प्रभावित करती हैं। इसमें सलाना पूर्व-स्तर में होने वाला आकलन और परीक्षण भी शामिल है ।

   एक अच्छी मूल्यांकन और परीक्षा पद्धति सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन सकती है जिसमें शिक्षार्थी और शिक्षा तंत्र दोनों को ही विवेचनात्मक और आलोचनात्मक प्रतिपुष्टि से फायदा हो सकता है। यह भाग मूल्यांकन और आकलन को संबोधित करते हुए शुरू होता है, क्योंकि ये सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के लिए पाठ्यचर्या के भाग की तरह प्रासंगिक होते हैं ।

   शिक्षा का सरोकार एक सार्थक व उत्पादक जीवन की तैयारी से होता है और मूल्यांकन आलोचनात्मक प्रतिपुष्टि देने का तरीका होना चाहिए। यह प्रतिपुष्टि इस बात की होती है कि हम ऐसी शिक्षा लागू करने में किस हद तक सफलता प्राप्त कर पाएँ। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो वर्तमान में चल रही मूल्यांकन की प्रक्रियाएँ जो केवल कुछ ही योग्यताओं को मापती और आकलित करती हैं, बिल्कुल ही अपर्याप्त हैं और शिक्षा के उद्देश्यों की ओर प्रगति की संपूर्ण तस्वीर नहीं खींचती हैं ।

   लेकिन मूल्यांकन का यह सीमित प्रयोजन भी, अकादमिक और शैक्षिक विकास पर प्रतिपुष्टि देने वाला, तभी बन सकता है जब शिक्षक पढ़ाने से पहले ही न केवल आकलन के तरीकों की तैयारी करें बल्कि मूल्यांकन के मानकों और उसके लिए प्रयुक्त होने वाले औजारों की भी तैयारी करें। विद्यार्थियों की उपलब्धि की गुणवत्ता की जाँच के अलावा एक अध्यापक को विभिन्न विषयों में उनकी उपलब्धि की जानकारी इकट्ठा कर, उसका विश्लेषण कर और उसकी व्याख्या करनी होगी। तभी अध्यापक विभिन्न क्षेत्रों में विद्यार्थियों के अधिगम की सीमा की एक समझ बना पाएँगे।

   आकलन का प्रायोजन निश्चय ही सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं एवं सामग्री का सुधार करना है और उन लक्ष्यों पर पुनर्विचार करना है, जो स्कूल के विभिन्न चरणों के लिए तय किए गए हैं। यह पुनर्विचार और सुधार इस आधार पर किया जा सकता है कि शिक्षार्थियों की क्षमता किस हद तक विकसित हुई ? यह कहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि यहाँ इस आकलन का मतलब विद्यार्थियों का नियमित परीक्षण कतई नहीं है। बल्कि, दैनिक गतिविधियाँ और अभ्यास के उपयोग से अधिगम का बहुत ही अच्छा आकलन हो सकता

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