Author name: Shobha Singh

अठारहवीं शताब्दी के दौरान स्वदेशी शिक्षा या देशज शिक्षा का वर्णन

  अठारहवीं शताब्दी के दौरान स्वदेशी शिक्षा या देशज शिक्षा       स्वेदशी शिक्षा या देशज शिक्षा से हमारा तात्पर्य 18वीं शताब्दी के दौरान भारत में प्रचलित शिक्षा व्यवस्था से है। जब अंग्रेज भारत आए, उस समय भारत में शिक्षा की स्वदेशी प्रणाली से पढ़ाई होती है। उस समह हमारे यहाँ मुस्लिमों के लिए अनेक मकतब […]

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मकतब एवं मदरसा क्या हैं ?

  मकतब –        यह मुस्लिम शिक्षा व्यवस्था के प्राथमिक शिक्षा के केंद्र हुआ करते थे | ‘मकतब’ शब्द अरबी भाषा के ‘कुतुब’ शब्द से निकाला है जिसका अभिप्राय हैं वह स्थान जहाँ पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। मध्यकाल में ये मकतब प्रायः मस्जिदों से संलग्न होते थे और एक शिक्षकीय होते थे ।

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वैदिक काल एवं मुस्लिम काल में नारी शिक्षा क्या हैं ?

  वैदिक काल में नारी शिक्षा-       प्रारंभिक वैदिक काल पर नजर डालने से ज्ञात होता है कि स्त्रियों को प्रत्येक प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने का समान अधिकार प्राप्त था । वेदों में ‘स्त्री’ को पुरुष जाति का पूरक माना जाता था। उन्हें पुरुषों को भाँति वेदों का अध्ययन करने की पूरी स्वतंत्रता प्राप्त

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उपनयन संस्कार , पब्बज्जा, बिस्मिल्लाह क्या हैं ?

    उपनयन संस्कार, पब्बज्जा, बिस्मिल्लाह उपनयन संस्कार –        वैदिक काल में बालक में संस्थागत शिक्षा की औपचारिक शुरुआत उपनयन संस्कार के द्वारा होती थी। उपनयन का आशय है- पास ले जाना अर्थात् बालक को औपचारिक शिक्षा प्रदान करने के लिए गुरु के पास ले जाना ही उपनयन संस्कार कहलाता है। इस संस्कार

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मुस्लिम शासकों द्वरा चलाई गई शिक्षा प्रणाली

  मुस्लिम शिक्षा- प्रणाली के क्या उद्देश्य     मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली को हम मुस्लिम- कालीन शिक्षा-प्रणाली के नाम से जानते हैं। चूँकि भारत प्राचीन काल में समृद्धशाली देश था, इसलिए विदेशी भी यहाँ आक्रमण करते रहे । मुस्लिम आक्रमणकारी भी भारत में अपना शासन स्थापित करना चाहते थे। महमूद गजनवी पहला मुस्लिम आक्रमणकारी था, जिसने

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बौद्धकालीन व्यावसायिक शिक्षा

बौद्धकालीन व्यावसायिक शिक्षा — बौद्ध शिक्षा धर्म –प्रधान थी| किन्तु , बौद्ध साहित्य मेंहमें इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं की भिक्षुओं और जनसाधारण को व्यावसायिक शिक्षा की अत्युत्तम सुविधाएँ प्राप्त थीं। इस शिक्षा के प्रमुख अंगों का प्रकाश विश्लेषण – 1 . हस्तशिल्पों की शिक्षा – “महावाग्ग में हमें एक स्थान पर इस

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बौद्धकालीन शिक्षा के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय

   बौद्धकालीन शिक्षा के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय – बौद्धकाल में शिक्षा के मुख्य केन्द्र मठ और विहार थे। इनमें छात्रावास सम्बद्ध थे। छात्रों को निःशुल्क शिक्षा, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा आदि की सुविधा प्राप्त थी। कुछ मठों और विहारों ने विश्वविद्यालयों के रूप में विकसित होकर पर्याप्त ख्याति अर्जित की। यथा— 1 . नदिया विश्वविद्यालय — यह

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बौद्धकालीन शिक्षा और ब्रह्मनीय शिक्षा मेंअंतर

बौद्धकालीन शिक्षा अनेक बातों में ब्रह्मनीय शिक्षा से अलग हैं       चूँकि वैदिक काल में ज्ञान प्राप्ति हेतु शिक्षा का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक विकास करना था। परन्तु, उत्तर वैदिक काल में यज्ञ, वहन आदि धार्मिक संस्कारों को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान दिये जाने पर बल दिया गया, जिसके फलस्वरूप पुरोहितवाद का उदय हुआ तथा शिक्षा

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प्राचीन भारत में अध्ययन के पाठ्यक्रम

   प्राचीन भारत में अध्ययन के पाठ्यक्रम प्राचीन भारत में शिक्षा के विभिन्न स्तर और पाठ्यक्रम –  प्राचीन भारत में शिक्षा के दो स्तर देखने को मिलते हैं:  (1) प्राथमिक शिक्षा स्तर     और    (2) उच्च शिक्षा स्तर  शिक्षा के विभिन्न स्तरों की व्यवस्था और पाठ्यक्रम: 1 . प्राथमिक शिक्षा स्तर – आज की प्राथमिक शिक्षा

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भारत में वैदिक काल शिक्षा

भारत में वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के दोष    प्राचीन युग में ‘शिक्षा’ को न तो पुस्तकीय ज्ञान का पर्यायवाची माना गया और न जीविकोपार्जन का साधन । इसके विषय में, शिक्षा को वह प्रकाश माना गया है, जो व्यक्ति को अपना सर्वांगीण विकास करने, उत्तम जीवन व्यतीत करने और मोक्ष प्राप्त करने में

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