बुद्धि से आप क्या समझते हैं
राइल ने सन् 1949 में यह तर्क प्रस्तुत किया कि बुद्धि द्वारा गुण का बोध न होकर एक प्रवृत्ति की सूचना मिलती है। । इस परिप्रेक्ष्य में बुद्धिमान जैसे पदों के अनुप्रयोग की अपेक्षा बुद्धिमतापूर्ण आचरण या व्यवहार प्रकट करने की बात कहना अधिक उचित होगा | हमें यह भी ज्ञात है कि शिक्षण, अधिगम, अभिप्ररेणा एवं व्यक्तित्त्व जैसे कारकों में व्यक्ति की बुद्धि एवं उससे सम्बन्धित चरों का चोली-दामन का साथ होता है।
बुद्धि के सम्प्रत्यय को विकसित करने की दृष्टि से 19वीं शताब्दी के सुविख्यात विचारक योग्यताओं से भिन्न एक सामान्य योग्यता के रूप में उपकाल्पत किया। अतः बाद में आगे चलकर बुचर (1968) ने यह बताया है कि बुद्धि सम्बन्धी यह परिकल्पना अनेक आधुनिक तंत्रिका विज्ञानियों को अभी मान्य है।
इस सदी के आरम्भ में कार्ल पियर्सन द्वारा प्रस्तावित ‘कारक-विश्लेषण विधि’ का अनुप्रयोग करते हुए स्पीयरमैन ने अपनी सांख्यिकीय साक्षियों के आधार पर एक सामान्य योग्यता या ‘बुद्धि’ जैसे तत्त्व की प्रधानता होने का उल्लेख किया । फ्रांस में लगभग इसी समय बिने ने ‘बुद्धि-मापन’ हेतु पहला स्केल बनाया, जिसे बुद्धि सम्बन्धी गुण के अनुसार व्यक्ति में विभेद कर सकने की दृष्टि से अत्यन्त संतोषजनक पाया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि सम्बन्धी इस धारणा का खण्डन किया और एक नये परिप्रेक्ष्य को अपनाया, जिसमें बुद्धि के अन्तर्गत विशिष्ट क्षमताओं एवं उनसे सम्बन्धित संरचनाओं के अध्ययन पर जोर दिया गया।
बुद्धि की परिभाषाएँ:
बिने के अनुसार, ‘बुद्धि से तात्पर्य है – अच्छे से निर्णय लेना, अच्छा अवबोध एवं अच्छा तर्क प्रस्तुत करना, व्यवहारपटुता, पहल करना, परिस्थितियों से समंजन कर सकने की क्षमता ।।
बर्ट के अनुसार, “बुद्धि एक जन्मजात सामान्य संज्ञानात्मक योग्यता है।”
नाइट क अनुसार, “बुद्धि एक सम्बन्धसूचक रचनात्मक चिन्तन की क्षमता है, जिसका। उद्देश्य कुछ विशेष प्रकार के लक्ष्यों को प्राप्त करना है।”
टरमैन के अनुसार, “अमूर्त चिन्तन कर सकने की क्षमता को बुद्धि कहते हैं |”
उक्त परिभाषाओं पर ध्यान देने से यह ज्ञात होता है कि बुद्धि की धारणा को दो वर्गों में रखा जा सकता है। प्रथम, खुला या व्यापक दृष्टिकोण जो बुद्धि से सर्वप्रचलित एवं सर्वमान्य मत को अभिव्यक्त करता है । द्वितीय, संकीर्ण या संकुचित दृष्टिकोण, जिसमें वैज्ञानिक शुद्धता पर जोर दिया जाता है और बुद्धि की बहुरूपात्मक पक्षों की अवहेलना की जाती है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बुद्धि सम्बन्धी परिभाषाओं पर विचार करने से यह अवगत होता है कि इन्हें अग्रवर्णित चार श्रेणिया में बाँटा जा सकता है.-
1.बुद्धि एक परिणाम के रूप में –
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को एक जन्मजात सामान्य योग्यता माना । बद्धि सम्बन्धी इस प्रकार के निरूपण का यह निहितार्थ है कि परिभाषित एवं मापित रुपों में बद्धि के स्वरूपों में भिन्नता है।
2. बुद्धि एक धारणा के रूप में –
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को धारणा के रूप में विवेचित किया है। स्पीयरमैन ने यह बताया कि बुद्धि-मापन द्वारा उपलब्ध प्राप्तांकों में दो प्रकार की योग्यताएँ प्रदर्शित होती हैं—सामान्य योग्यता एवं विशिष्ट योग्यता।
इसी प्रकार थर्स्टन ने सात प्रमुख मानसिक योग्यताओं को बुद्धि के अन्तर्गत समावेश किया है। गिलफोर्ड ने एक सौ बीस प्रकार की स्वतंत्र योग्यताओं का उल्लेख बुद्धि के एक नवीन मॉडल में प्रस्तावित किया।
3. बुद्धि एक प्रक्रिया के रूप में –
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को प्रक्रिया के रूप में विवेचित किया है। इस परिप्रेक्ष्य में बुद्धि को व्यक्ति की अन्तर्दृष्टि की गुणवत्ता एवं परिणात्मक संख्या, विभेदीकरण, सामान्यीकरण एवं जीवन-देश की संरचना के आधार पर परिभाषित करने की पहल की गई है।
बुद्धि एक निर्णय के रूप में –
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को इस रूप में परिभाषित किया है। इस अर्थ में बुद्धि को व्यक्ति के निष्पादन सम्बन्धी निर्णय का द्योतक माना जाता है। इस प्रकार एक कोटि की बुद्धि वंशानुगत तत्त्वों एवं दूसरी प्रकार की बुद्धि पर्यावरण जन्य कारकों से प्रभावित होती है। किन्तु, ध्यान देने योग्य है कि इन दोनों प्रकार की बुद्धि-सम्बन्धी धारणाओं में कोई मौलिक विभेद नहीं कायम किया जा सकता है।
बुद्धि के प्रकार-गैरिट ने तीन प्रकार की बुद्धि का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित
(i) मूर्त बुद्धि – इस बुद्धि को यांत्रिक बुद्धि कहते हैं। इसका सम्बन्ध यंत्रों और मशीनों से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह यंत्रों और मशीनों के कार्यों में विशेष रुचि लेता है। जैसे अच्छे कारीगर, मैकेनिक, इंजीनियर, औद्योगिक कार्यकर्ता आदि।
(ii) अमूर्त बुद्धि – इस बुद्धि का सम्बन्ध पुस्तकीय ज्ञान से होता है । जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह ज्ञान का अर्जन करने में विशेष रुचि लेता है। जैसे अच्छे वकील, डॉक्टर, दार्शनिक, चित्रकार, साहित्यकार आदि।
(iii) सामाजिक बुद्धि – जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह मिलनसार, सामाजिक कार्यों में रुचि लेने वाला और मानव-सम्बन्ध के ज्ञान से परिपूर्ण होता है। जैसे अच्छे मंत्री, व्यवसायी, कूटनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता आदि ।
थार्नडाइक ने भी बुद्धि के प्रकारों का वर्णन इसी प्रकार किया है।
बुद्धि का मापन–
व्यक्ति की योग्यताओं का मापन अत्यन्त चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। ‘मानसिक मापन’ शब्द का अनुप्रयोग सर्वप्रथम गाल्टन ने किया | सन् 1884 ई. में उन्होंने एक बड़े पैमाने पर परीक्षण का कार्य शुरु किया। इसके अन्तर्गत उन्होंने कई मानवीय गुणों के मापित करने का सराहनीय प्रयास किया। गाल्टन ने इस पर जोर दिया कि परीक्षण के अन्तर्गत प्रस्तुत समस्याओं, उनकी परिस्थितियों एवं उनके हल करने के लिए दिए जाने वाले निर्देशों में समानता का होना आवश्यक है।
यहाँ स्मरणीय योग्य है कि गाल्टन द्वारा निर्मित परीक्षाएँ अधिकांश संवेदी भेद-बोध यथा-स्वरों ने अन्तर करना, दृष्टि की तीव्रता, रंगों में विभेद करना तथा अन्य परिवेश में उपलब्ध वस्तुओं को समझने एवं उन पर आधारित तर्कपर्ण चिन्तन कर सकने की दृष्टि से तीस समस्याओं को प्रस्तुत किया गया। ये समस्यायें कठिनाई स्तर के अनुसार वितरित थीं तथा इनमें छोटी आयु के बालकों से लेकर प्रौढ़ावस्था के लिए उपयुक्त समस्याओं का समावेश किया गया था। इनमें से कुछ समस्यओं का उल्लेख किया जा रहा है –
- सिर, नाक, कान, टोपी, कुन्जी तथा डोरी को छना।
- यह निर्णय करना कि प्रदत्त दो रेखाओं में से कौन अपेक्षाकृत अधिक लम्बी है |
- परीक्षक के पढ़ने के बाद तीन अंकों वाली संख्या को दुहराना |
- गृह, अश्व, फोर्क, माता आदि पदों को परिभाषित करना।
- एक ही बार सुनने पर पन्द्रह शब्द वाले वाक्य को दहराना ।
इस प्रकार की समस्याओं पर आधारित प्रश्नों को पचास बच्चों के माध्यम से परीक्षित करने के बाद एक अस्थायी मानक विकसित किया गया। इसमें प्रश्नों को आयु स्तरों के अनुसार गठित किया गया था। बालक जिस उच्चतम आयु-स्तर तक निष्पादान प्रदर्शित कर सकता था, उसे उनकी मानसिक आयु की संज्ञा दी गई। बाद में चलकर विलियम स्टर्न ने यह सुझाव दिया कि बालक की इस प्रकार ज्ञात की गई मानसिक आयु को उसकी शारीरिक आयु से भाग के 100 से गुणा कर दिया जाये । इसे लोकप्रिय भाषा में I.Q. या बुद्धि –लब्धि कहा जाता है।
भारतीय संदर्भ में डॉ॰ सी॰ हरवार्ट राईस ने सन् 1922 ई० में ‘बिने’ परीक्षण का पहला अनुकूलित रूप पंजाब में विकसित किया। बाद में चलकर वी. वी. कामत ने 1935 ई .में ‘बिने स्केल’ का रूपान्तरण मराठी तथा कन्नड़ भाषाओं में किया ।
पिछले कुछ दशकों में लगभग सभी भारतीय भाषाओं में बुद्धि-परीक्षाओं को गठित करने का प्रशंसनीय पग उठाया गया है। प्रारंभ में वैयक्तिक परीक्षाओं का निर्माण किय गया, किन्तु, बाद में सामूहिक परीक्षाओं में प्रति विशेष प्रदर्शित की गई।
बुद्धि के वर्णन में निहित तर्क-दोष : गार्डन आर० क्रास (1974) ने इस सन्दर्भ में अधोलिखित तर्क-दोषों के प्रति हमारा विशेष रूप में ध्यान आकर्षित किया है –
1 . बुद्धि जन्मजात एवं निश्चित होती है –
बुद्धि को व्यक्ति की ऐसी जन्मजात सम्पति के रूप में उपकल्पित किया जाता है जो पर्यावरण द्वारा विकसित एवं पोषित होती है । इस प्रकार बुद्धि में आनुवंशिकी एवं परिवेशगत कारकों को योगदान स्पष्ट है। किन्तु, यह निश्चित रूप में नहीं कहा जा सकता कि वंशानुगत एवं पर्यावरणजन्य तत्त्व बुद्धि को किस परिसीमा तक प्रभावित करते हैं।
2 .व्यक्ति का बौद्धिक विकास उसकी किशोरावस्था में चरम बिन्दु पर पहुंच जाता है तथा तदुपरान्त धीरे-धीरे उसमें हास होता है –
उपर्युक्त तथ्य को विगत वर्षो में प्राय : माना गया है। इसके बाद उसकी मानसिक बुद्धि में एक पठार दिखाई पड़ता है तथा उम्र ढलने के साथ उसमें ह्रास होने लगता है। विगत कुछ दशकों में निष्पन्न शोधो के अन्तर्गत इस धारणा को अपुष्ट घोषित कर दिया गया है।
अब मनोवैज्ञानिक यह मानने लग गया हैं कि बौद्धिक क्षमता में वृद्धि 20-25 वर्ष की आयु तक होती रहती है। इस धारणा को समर्थन प्रदान करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक यह रहा है कि अनौपचारिक शिक्षा में धीरे –धीरे प्रभावी विस्तार हुआ है, जिससे शैक्षिक स्तरों में वृद्धि हई है।
विद्यालय के बाहर शैक्षिक अवसरों का कारक यह रहा है कि अनौपचारिक शिक्षा में धीरे-धीरे प्रभावी विस्तार हुआ है जिससे शैक्षिक स्तरों में वृद्धि हुई है। विद्यालय के बाहर शैक्षिक अवसरो को उपलब्ध कराने की जोरदार कोशिश हुई है तथा खुली शिक्षा प्रणाली जिसमें प्रसार सेवा, आकाशवाणी दूरदर्शन तथा पत्राचार पाठ्यक्रम शामिल है, अत्यन्त लोकप्रिय बनी है।
3 . राष्ट्र की ‘बुद्धि‘ में ह्रास हो रहा है –
इस प्रकार की धारणा में मुख्य तर्क – दोष इस मान्यता के कारण है कि अधिक बुद्धिमान लोगों का परिवार अपेक्षाकृत छोटा तथा कम बुद्धिमान लोगों का परिवार अपेक्षाकृत बड़ा होता है। इस प्रकार औसत के नियम के अनुसार बुद्धी – स्टार मई ह्रास मान प्रवृत्ति का दिखाई पड़ना अवश्यम्भावी माना जाता है । किन्तु, आधुनिक टेक्नालॉजी के युग में अधिकतर राष्ट्र यह मानते हैं कि पोषण की गुणवत्ता एवं शिक्षा के विस्तार के प्रति वे सजग एवं सचेष्ट हैं। फिर, राष्ट्र की ‘बुद्धि’ में ह्रास होने की बात कुछ असंगत लगती है।
4 . पूरे जनसमूह में बुद्धि का वितरण सामान्य होता है –
यह प्रायः कहा जाता है कि बुद्धि-परीक्षणों के आधार पर पूरे जनसमूह की बुद्धि का वितरण सामान्य पाया जाता है। लेकिन इस तर्क में मुख्य दोष यह है कि बुद्धि परीक्षाओं में सम्मिलित प्रश्न या समस्याएँ इस विवरण को प्रभावित करते हैं।
5 . मानवीय योग्यता में एक क्षति-पूर्ति का तत्त्व निहित होता है –
इस प्रकार के तर्क का यह निहितार्थ है कि यदि कोई व्यक्ति यांत्रिक क्षमता में दुर्बल है, तो इसकी क्षतिपूर्ति वह अत्यधिक सृजनशील होकर कर लेता है तथा इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति शाब्दिक तर्क की क्षमता में कमजोर है तो इसकी क्षतिपूर्ति वह अपनी अन्य क्षमताओं में अभिवृद्धि लाकर कर लेता है। वर्नन ने इस सिद्धान्त की तीव्र आलोचना की है तथा यह बताया है कि तथाकथित ‘व्यावहारिक’ एवं ‘एकेडेमिक’ बालक में विभेजन करना भ्रामक है।