गुप्त साम्राज्य (Gupta Samrajy in Hindi)

गुप्त साम्राज्य (गुप्त राजवंश) में दो महत्वपूर्ण राजा थे, समुद्रगुप्त और दूसरे चंद्रगुप्त द्वितीय। गुप्त वंश के लोगों ने ही संस्कृत की एकता को फिर से स्थापित किया। चंद्रगुप्त प्रथम ने 320 ईस्वी में गुप्त वंश की स्थापना की थी, और यह वंश लगभग 510 ईस्वी तक शासन करता रहा। 463-473 ईस्वी में, सभी गुप्त राजा थे, केवल नरसिंहगुप्त बालादित्य को छोड़कर।

बालादित्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था, शुरुआती दौर में उनका शासन केवल मगध पर था, लेकिन फिर धीरे-धीरे संपूर्ण उत्तर भारत को उनके अधीन कर लिया था

गुप्त राजवंश प्राचीन इतिहास

गुप्त वंश का प्रारम्भिक इतिहास इस लेख में हिंदी में वर्णित किया गया है। गुप्त राजवंश की स्थापना ईसवी 275 में महाराजा गुप्त द्वारा की गई थी। इसके बारे में आज तक स्पष्ट नहीं है की की गुप्त का नाम केवल गुप्त था या श्रीगुप्त|इस विषयं में आज तक कोई लेख या सिक्का कुछ भी नहीं मिला |

उस समय के दो मुहरे मिले जिनमे से से

1.एक के ऊपर संस्कृत और प्राकृत भाषा के मिश्रित लेख में ‘गुप्तस्य’ लिखा है

2.जबकि दूसरे के ऊपर संस्कृत में ‘श्रीगुप्तस्य’ लिखा हुआ है |

यह पता चलता है कि गुप्त वंश का दूसरा शासक महाराज घटोत्कच था, जो श्रीगुप्त का पुत्र था। प्रभावती गुप्ता के पूना और रिद्धपुर ताम्रपत्रों में केवल उसे ही गुप्त वंश का प्रथम शासक (आदिराज) को माना गया है | स्कन्दगुप्त के सुपिया (रीवा) के सभी लेख में भी गुप्तों की वंशावली घटोत्कच के बारे में पहले के समय से ही प्रारंभ होती है। इस आधार पर कुछ विद्वानों का यह भी सुझाव है कि वस्तुतः घटोत्कच ही इस वंश का संस्थापक था। ऐसा हो सकता है की गुप्त या श्रीगुप्त कोई इनका पूर्वज रहा होगा और उन्हीं के नाम पर गुप्त वंश का नाम पड़ा |

फिर भी गुप्त लेखों के विषय में इस वंश का प्रथम शासक श्रीगुप्त को ही कहा गया है,क्यों की हो सकता है उस समय यह वंश मजबूत स्थिति में नहीं था इसके बाद घटोत्कच के काल में ही सबसे पहले गुप्तों ने गंगा घाटी में राजनैतिक महत्व प्राप्त किया और अपना वंश को वर्चस्व में लाया |

इसी कारण कुछ अनेक प्रकार के लेखों में घटोत्कच को ही गुप्त वंश का राजा कहा गया है। उसके भी संबंधित कोई लेख अथवा सिक्के अभी तक नहीं मिलते।

इन दोनों शासकों की किसी भी प्रकार की उपलब्धि के विषय के बारे में हमें पता नहीं है। यह लगता है कि इन दोनों के नाम के पूर्व ‘महाराज’ की उपाधि को देखकर लगता है कि अधिकांश विद्वानों ने उन्हें स्वतंत्र स्थिति में संदेह व्यक्त किया होगा और उन्हें सामन्त शासक बताया है।

सुधाकर चट्टोपाध्याय के मतानुसार मगध पर तीसरी शती में मुरुण्डों का शासन हुआ करता था और साथ ही महाराज गुप्त तथा घटोत्कच उन्हीं के सामंत हुआ करते थे।

फ्लीट और बनर्जी की के अनुसार गुप्त शकों के सामंत थे तथा वे तृतीय शताब्दी के समय मगध के शासक थे। सबसे पहले चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही गुप्त वंश को शकों की अधीनता से मुक्त करवाया था।

परंतु इस प्रकार ऐसी विविध मतमतान्तरों के बीच यह निश्चित रूप से बताना कठिन हो सकता है कि प्रारम्भिक गुप्त नरेश किस सार्वभौम शक्ति के पराधीनता स्वीकार किया था |प्राचीन भारत में ऐसे बहुत से स्वतंत्र राजवंश हुआ करते थे |

जैसे-

लिच्छवि,
मघ,
भारशिव,
वाकाटक आदि

सभी राजवंशों के शासक विशेष रूप से ‘महाराज’ उपाधि का उपयोग करते थे।

‘महाराजाधिराज’ शब्द का प्रथम चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा ही उपयोग किया गया था। ऐसा लगता है कि शकों ने क्षत्रप और महाक्षत्रप की उपाधियों का अनुकरण किया था जिससे यह परंपरा उत्पन्न हुई होगी। बाद के भारतीय शासकों ने इसे अपनाया और ‘महाराज’ शब्द को सामंतवादी स्थिति का परिचयक बनाया गया था। वास्तविकता में, यह स्पष्ट है कि महाराज गुप्त और घटोत्कच बहुत ही साधारण शासक थे, जिनका राज्य मुख्य रूप से मगध के पास था। इन दोनों महान राजाओं ने लगभग 319-20 ईसवी के दौरान राज्य का संचालन किया था।

गुप्त राजवंश का इतिहास हमें साहित्यिक और पुरातत्वीय दोनों ही प्रमाणों से हमें ज्ञात कराता है । साहित्यिक साधनों में पुराण सबसे ऊपर हैं । पुराणों में

विष्णु,
वायु
ब्रह्माण्ड


इन तीनो को ही पुराणों में गुप्त-इतिहास के पुनर्निर्माण में सहायकमाना गया है और ये तर्क संगत भी है |गुप्त वंश (Gupta Dynasty) के प्रारंभिक इतिहास के बारे में इन सामग्रियों से हमें जानकारी प्राप्त होती है।

विशाखदत्त द्वारा रचित ‘देवीचन्द्रगुप्तम्’ नाटक से गुप्तवंश के नरेश रामगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारे में सूचना मिलती है। उस समय कालिदास को गुप्तकालीन विभूति माना जाता था और उनकी रचनाओं से गुप्तयुगीन समाज और संस्कृति का प्रकाश प्रकट होता था।

‘मृच्छकटिक’ नाटक और वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ से भी गुप्तकालीन शासन-व्यवस्था और नगर जीवन के बारे में रोचक जानकारी मिलती है। गुप्त इतिहास के पुनर्निर्माण में विदेशी यात्रियों के बारे में विवरण भी मददगार साबित होते हैं,

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